Class 10 Science Chapter 13 Magnetic Effects of Electric Current

विद्युत धारा के चुम्बकीय प्रभाव 

विज्ञान कक्षा -10


विज्ञान  कक्षा -10
पाठ 13 : विद्युत धारा के चुंबकीय प्रभाव
विद्युत धारा के चुम्बकीय प्रभाव : जब किसी चालक तार में से विद्युत धारा गुजारी जाती है तो यह तार एक चुंबक की भांति व्यवहार करती है, यह घटना विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव कहलाती है।
चुम्बक
 एक ऐसा पदार्थ जिसमें  लौह, निकल, कोबाल्ट आदि पदार्थों को अपनी ओर आकर्षित करने का गुण होता है, चुम्बक कहलाता है। एक छड़ चुम्बक को जब स्वतंत्र अवस्था में लटकाया जाता है तो यह हमेशा उत्तर-दक्षिण दिशा में आकार ही ठहरता है ।



चुम्बक के गुण।
1.       एक छड़ चुम्बक को जब स्वतंत्र अवस्था में लटकाया जाता है तो यह हमेशा उत्तर-दक्षिण दिशा में आकार ही ठहरता है ।
2.       चुम्बक का जो सिरा उत्तर दिशा की ओर संकेत करता है वह उत्तर ध्रुव कहलाता है, तथा जो सिरा दक्षिण दिशा की ओर संकेत करता है वह दक्षिण ध्रुव कहलाता है।
3.       चुम्बक के सजातीय (समान) ध्रुव आपस में प्रतिकर्षित करते हैं, तथा विजातीय (विपरीत ) ध्रुव आपस में आकर्षित करते हैं।
4.       चुम्बक के ध्रुवों को पृथक नहीं किया जा सकता ।  

प्रश्न: चुम्बक के निकट लाने पर दिक्सूचक की सुई विक्षेपित क्यों हो जाती है?
उत्तर: वास्तव में दिक्सूचक की सूई एक छोटा छड़ चुम्बक होती है। जब इसे किसी चुबक के निकट लाया जाता है तो इस पर आकर्षण या प्रतिकर्षण बल लगता है, इसलिए यह विक्षेपित हो जाती है।

चुम्बकीय क्षेत्र : चुम्बक के चारों ओर का वह क्षेत्र जिसमें इसके आकर्षण या प्रतिकर्षण बल को अनुभव किया जा सके चुम्बकीय क्षेत्र कहलाता है।

आर्स्टेड का प्रयोग :
इस प्रयोग में एक मोटे तार XY को चित्र के अनुसार विद्युत परिपथ में जोड़ा जाता है। इस तार के पास एक छोटी दिक्सूचक क्षैतिज रूप में रखी जाती है। पलग में कुंजी लगाने से तार XY में विद्युत धारा प्रवाहित होने पर पास रखी दिक्सूचक में विक्षेप उत्पन्न होता है।  
इस प्रयोग से सिद्ध होता है कि विद्युत धारा  चुम्बकीय प्रभाव उत्पन्न करती है।
इसी तरह के प्रेक्षणों के आधार पर आर्स्टेड ने यह प्रमाणित किया कि विद्युत तथा चुम्बकत्व परस्पर संबन्धित घटनाएँ है।


चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ: जब एक ड्राइंगबोर्ड पर छड़ चुम्बक के निकट लौह-चूर्ण को फैलाया जाता है तो लौह-चूर्ण कई रेखाओं के अनुदिश संरेखित हो जाता है, ये रेखाएँ चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ कहलाती है।
दिक्सूचक का उत्तरी ध्रुव चुम्बकीय क्षेत्र रेखाओं के अनुदिश गमन करता है।

दिक्सूचक की सहायता से चुम्बकीय क्षेत्र रेखाओं को आरेखित करना:
दिक्सूचक कि सहायता से चुम्बकीय क्षेत्र रेखाओं को आरेखित करने के लिए निम्नलिखित चरण है-
1.       एक कागज की शीट को ड्राईंगबोर्ड पर रखें तथा कागज के बीच में एक छड़ चुम्बक रखें।
2.       एक दिक्सूचक को चुम्बक के उत्तरी ध्रुव के निकट लाइए।
3.       दिक्सूचक कि सूई को इस प्रकार व्यवस्थित कीजिए कि उसका दक्षिण ध्रुव, चुम्बक के उत्तर ध्रुव कि ओर संकेत करे।
4.       एक नुकीली पेंसिल से उसके दोनों सिरों कि स्थितियों को अंकित कीजिए।
5.       अब दिक्सूचक को इस प्रकार रखिए कि उसका दक्षिण ध्रुव उस स्थिति पर आ जाए जहां पहले उत्तर ध्रुव को अंकित किया था। अब सूई के सिरों द्वारा निर्दिष्ट स्थितियों को अंकित कीजिए।
6.       चुंबक के दक्षिण ध्रुव पर पहुँचने तक इस क्रिया को चरणों मे दोहराए।

7.       अब कागज पर प्राप्त बिन्दुओं को मिलाएँ। हमें एक निष्कोण वक्र (smooth curve) प्राप्त होगा। यही वक्र चुम्बकीय क्षेत्र रेखा है। इसी तरह हम अन्य कई सारी रेखाएँ खीच सकते है।

नोट: चुम्बकीय क्षेत्र एक सदिश राशि है जिसमें परिणाम व दिशा दोनों होते हैं। किसी चुम्बकीय क्षेत्र कि दिशा वह मानी जाती है जिसके अनुदिश दिकसूचक का उत्तरी ध्रुव उस क्षेत्र के भीतर गमन कारता है।

चुम्बकीय बल रेखाओं के गुण:
1.       परिपाटी के अनुसार चुम्बकीय बल रेखाएँ चुम्बक के उत्तर ध्रुव से प्रकट होकर दक्षिण ध्रुव पर विलीन होती है तथा चुम्बक के अंदर इन रेखाओं कि दिशा दक्षिण ध्रुव से उत्तर ध्रुव कि ओर होती है। इसलिए ये रेखाएँ बंद वक्र होती है।
2.       जहां चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ अपेक्षाकृत अधिक निकट होती है वहाँ चुम्बकीय क्षेत्र अधिक प्रबल होता है तथा जहां ये रेखाएँ अधिक विरल होगी वहाँ चुम्बकीय क्षेत्र कि प्रबलता कम होगी।
3.       दो चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ एक दूसरे को कहीं भी प्रतिच्छेद नहीं करती, यदि वे ऐसा करे तो प्रतिच्छेद बिन्दु पर दिक्सूचक रखने पर उसकी सूई दो दिशाओं कि ओर संकेत करेगी जो संभव नहीं है।

सीधे चालक से विद्युत धारा प्रवाहित होने के कारण चुम्बकीय क्षेत्र:
किसी सीधे चालक से विद्युत धारा प्रवाहित होने पर उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र को पैटर्न निर्धारित करने के लिए हम निम्न प्रयोग करते है-
प्रयोग: एक मोटी तांबे की तार XY को चित्र के अनुसार बैटरी, परिवर्ती प्रतिरोध, ऐमीटर के साथ जोड़ा जाता है। एक मोटे गत्ते के बीचों बीच तार XY को इस प्रकार गुजारा जाता है कि गत्ते का तल क्षैतिज दिशा में हो तथा तार से लम्बवत हो। अब गत्ते पर लौह-चूर्ण फैलाया जाता है।

·        जब तार में से विद्युत धारा गुजारी जाती है तो लौह-चूर्ण संरेखित होकर तार के चारों ओर संकेंद्री वृतों के रूप में व्यवस्थित होकर एक वृताकार पैट्रन बनाता है। ये संकेद्री वृत चुम्बकीय क्षेत्र रेखाओं को प्रदर्शित करते है।
·        वृत के किसी भी बिन्दु पर दिक्सूचक रखने पर दिक्सूचक का उत्तर ध्रुव उस बिन्दु पर चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा बताता है। यदि विद्युत धारा की दिशा उत्क्रमित (उल्टी) कर दी जाए तो चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा भी उत्क्रमित हो जाएगी।


·        यदि विद्युत धारा के मान में वृद्धि कर दी जाए तो दिक्सूचक की सूई के विक्षेप में भी वृद्धि हो जाती है। इससे यह पत्ता चलता है कि विद्युत धारा के मान में वृद्धि करने पर चुम्बकीय क्षेत्र के मान में भी वृद्धि हो जाती है।
·        यदि विद्युत धारा समान रहे और दिक्सूचक तार से दूर चला जाता है तो दिक्सूचक का विक्षेप भी कम हो जाता है। इसका अर्थ है कि चालक से दूर जाने पर चुम्बकीय क्षेत्र का मान कम हो जाता है।
दक्षिण हस्त नियम
इस नियम के अनुसार यदि हम अपने दाहिने हाथ में विद्युत धारावाही चालक को इस प्रकार पकड़े हुए हैं कि अंगूठा विद्युत धारा की दिशा की ओर संकेत करता है तो हमारी उंगलियां चालक के चारों ओर चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं की दिशा में लिपटी होगी


उदाहरण
किसी  क्षैतिज  शक्ति संचरण लाइन में पूर्व से पश्चिम दिशा की ओर विद्युत धारा प्रवाहित हो रही है। इसके ठीक नीचे के बिंदु पर तथा इसके ठीक ऊपर के किसी बिंदु पर चुंबकीय क्षेत्र की दिशा क्या है?

प्रश्न
1.       किसी छड़ चुंबक के चारों और चुंबकीय क्षेत्र  रेखाएं  खींचिए।
2.       चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं के गुणों की सूची बनाइए।
3.       दो चुंबकीय क्षेत्र रेखाएं एक दूसरे को प्रतिछेद क्यों नहीं करती?

किसी धारावाही वृत्ताकार पाश के कारण चुंबकीय क्षेत्र:


किसी वृत्ताकार कुंडली में धारा प्रवाहित करने पर जैसे-जैसे हम तार से दूर हटते जाते हैं, उसके प्रत्येक बिंदु के चारों ओर उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र को निरूपित करने वाले संकेंद्री वृतों का आकार बड़ा होता जाता है तथा जैसे ही वृत्ताकार लूप के केंद्र पर पहुंचते हैं तो  इन  बड़े  वृतों के चाप सरल रेखाओं के सामान लगते हैं। धारावाहक तार के प्रत्येक बिंदु से चुंबकीय क्षेत्र रेखाएं उत्पन्न होती हैं। तार के प्रत्येक भाग के योगदान के कारण लूप के भीतर चुंबकीय क्षेत्र रेखाएं एक ही दिशा में होती है।

किसी धारावाहक पाश में उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र निम्नलिखित कारकों पर निर्भर करता है
1.       धारा के मान पर- धारा का मान बढ़ाने पर चुंबकीय क्षेत्र की प्रबलता बढ़ जाती है।
2.       कुंडली के  फेरों की संख्या पर-  वृत्ताकार कुंडली के फेरों की संख्या बढ़ाने पर चुंबकीय क्षेत्र की प्रबलता बढ़ जाती है।

3.       पाश की त्रिज्या- पास की त्रिज्या चुंबकीय क्षेत्र के व्युत्क्रमानुपाती होती है।

परिनालिका में प्रवाहित विद्युत धारा के कारण चुंबकीय क्षेत्र
 परिनालिका: पास पास लिपटे विद्युत रोधी तांबे के तार की बेलन की आकृति की अनेक फेरों वाली कुंडली को परिनालिका कहते हैं।

किसी विद्युत धारावाही परिनालिका के कारण उसके चारों और उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं का पैटर्न चित्र में दर्शाया गया है यह चुंबकीय क्षेत्र छड़ चुंबक के चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं के पैटर्न जैसा प्रतीत होता है। वास्तव में परिनालिका का एक सिरा उत्तर ध्रुव तथा दूसरा सिरा दक्षिण पूर्व की भांति व्यवहार करता है, अर्थात परिनालिका एक छड़ चुंबक की तरह व्यवहार करती है।  परिनालिका के भीतर एक समान चुंबकीय क्षेत्र होता है । 
परिनालिका के भीतर उत्पन्न प्रबल चुंबकीय क्षेत्र द्वारा किसी चुंबकीय पदार्थ,  जैसे नरम लोहे, को परिनालिका के भीतर रखकर चुंबक बनाया जाता है  इस प्रकार बने चुंबक को विद्युत चुंबक कहते हैं।


किसी धारावाही परिनालिका में चुंबकीय क्षेत्र की प्रबलता कैसे बढ़ाई जा सकती है?
 चुंबकीय क्षेत्र की प्रबलता निम्नलिखित कारकों पर निर्भर करती है-
1.       धारा के मान पर- धारावाही परिनालिका में विद्युत धारा का मान बढ़ा कर उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र की प्रबलता बढ़ाई जा सकती हैं।
2.       फेरों की संख्या बढ़ाकर- कुंडली में फेरों की संख्या बढ़ाकर चुंबकीय क्षेत्र की प्रबलता बढ़ाई जा सकती हैं।
3.       नरम लोहे के क्रोड द्वारा- परिनालिका में नरम लोहे के क्रोड का प्रयोग करके चुंबकीय क्षेत्र की प्रबलता बढ़ाई जा सकती है।

प्रश्न 1. मेज के तल में पड़े तार के वृत्ताकार पाश पर विचार कीजिए।  मान लीजिए इस पास में दक्षिणावर्त विद्युत धारा प्रवाहित हो रही है। दक्षिण हस्त अंगूष्ठ नियम को लागू कर के पास के भीतर तथा बाहर चुंबकीय क्षेत्र की दिशा ज्ञात कीजिए।
 उत्तर- दक्षिण हस्त अंगूष्ठ नियम के अनुसार, वृत्ताकार पाश  के अंदर चुंबकीय क्षेत्र की दिशा नीचे की ओर होगी तथा वृत्ताकार पाश  के बाहर चुंबकीय क्षेत्र की दिशा ऊपर की ओर होगी।

 प्रश्न 2  किसी दिए गए क्षेत्र में चुंबकीय क्षेत्र एक समान है। इसे निरूपित करने के लिए आरेख खींचिए।
 उत्तर-  चुंबकीय क्षेत्र समान होने की स्थिति में इसे समान दूरी की समांतर रेखाओं द्वारा ही प्रदर्शित किया जाएगा।

 प्रश्न 3  सही विकल्प चुनिए-
 किसी विद्युत धारावाही सीधी लंबी परिनालिका के भीतर चुंबकीय क्षेत्र-
a)      शून्य होता है।
b)      इसके सिरे की ओर जाने पर घटता है।
c)      इसके सिरे की ओर जाने पर बढ़ता है।
d)      सभी बिंदुओं पर समान होता है।

उत्तर- (d)  सभी बिंदुओं पर समान होता है।

चुंबकीय क्षेत्र में किसी विद्युत धारावाही चालक  पर बल
जब किसी विद्युत धारावाही चालक को चुंबकीय क्षेत्र में रखा जाता है तो चुंबकीय क्षेत्र के कारण उस चालक पर बल लगता है, इस घटना को निम्नलिखित क्रियाकलाप द्वारा निर्दशित किया जा सकता है-
 क्रियाकलाप-
1.       एलुमिनियम की एक छोटी  छड़ AB  लीजिए।
2.       दो संयोजक तारों द्वारा इसे स्टैंड से क्षैतिज  दिशा में लटकाए।
3.       एक प्रबल अश्वनाल  को इस प्रकार व्यवस्थित कीजिए कि छड़  दो ध्रुवों के बीच में हो तथा क्षेत्र ऊपर की ओर हो।
4.       इस स्थिति में B  से की और धारा प्रवाहित कीजिए।

5.       हम देखते हैं कि छड़ विस्थापित हो जाती है।

कारण- छड़  का विस्थापन,   धारावाही छड़ पर  चुंबकीय क्षेत्र  द्वारा आरोपित बल के कारण होता है।  चुंबक छड़  पर दाहिनी और दिष्ट  बल डालता है,  जिसके फलस्वरूप छड़  विक्षेपित हो जाती  है।  यदि हम धारा की दिशा बदल दें अथवा चुंबक के ध्रुव को परस्पर बदल दे तो छड़   का विक्षेपण भी  उलट जाएगा,   जो यह निर्दशित करता है कि बल की दिशा उलट गई है।  इससे यह प्रदर्शित होता है कि धारा क्षेत्र और चालक की गति की दिशाओं के बीच में संबंध है।  

धारा की दिशा और चुंबकीय क्षेत्र की दिशा को परस्पर लंबवत रखने पर चालक पर आरोपित बल की दिशा इन दोनों के लंबवत होती है।  इन तीनों दिशाओं की व्याख्या करने वाले नियम को फ्लेमिंग का वाम हस्त नियम कहते हैं।
 फ्लेमिंग का वाम हस्त नियम:  इस नियम के अनुसार,  बाएं हाथ की तर्जनी,  मध्यमा तथा अंगूठे को इस प्रकार  फैलाएं कि वे एक दूसरे से लम्बवत हो ।  यदि तर्जनी  चुंबकीय क्षेत्र की दिशा और मध्यमा चालक में प्रवाहित विद्युत धारा की दिशा की ओर संकेत करती है तो अंगूठा चालक की गति की ओर अथवा चालक पर आरोपित बल की दिशा की ओर संकेत करेगा।




उदाहरण 13.2
चित्र में दर्शाए अनुसार कोई  इलेक्ट्रॉन किसी चुंबकीय क्षेत्र में क्षेत्र के लंबवत प्रवेश करता है। इलेक्ट्रॉन पर आरोपित बल की दिशा क्या है?
a)      दाएं ओर
b)      बाई ओर
c)      कागज से बाहर की ओर आते हुए
d)      कागज के भीतर की ओर जाते हुए
उत्तर: विकल्प d  है।
हल: फ्लेमिंग के वाम हस्त नियम के अनुसार आरोपित बल की दिशा चुंबकीय क्षेत्र तथा विद्युत धारा दोनों की दिशाओं के लंबवत होती है। हम जानते हैं कि विद्युत धारा की दिशा इलेक्ट्रॉनों की गति की दिशा के विपरीत होती है । . अत:  आरोपित बल की दिशा कागज में भीतर की ओर जाते हुए हैं।

प्रश्न 1.  किसी प्रोटॉन का निम्नलिखित में से कौन सा गुण किसी चुंबकीय क्षेत्र में मुक्त गति करते समय परिवर्तित हो जाता है? (यहां एक से अधिक सही उत्तर हो सकते हैं)।
a)      द्रव्यमान
b)      चाल
c)      वेग
d)      संवेग
 उत्तर- (c)  वेग (d)  संवेग

प्रश्न 2.  क्रियाकलाप में हमारे विचार से छड़ AB  का विस्थापन किस प्रकार प्रभावित होगा यदि (i)  छड़ AB  मैं प्रवाहित धारा में वृद्धि हो जाए, (II)  अधिक प्रबल नाल चुंबक प्रयोग किया जाए और(iii) AB  की लंबाई में वृद्धि की जाए?
 उत्तर : (i) जब छड़ AB  मैं प्रवाहित विद्युत धारा की वृद्धि की जाएगी तब चालक पर लगा बल बढ़ेगा जिससे छड़ का विस्थापन बढ़ जाएगा।
(ii)  जब अधिक प्रबल चुंबक का प्रयोग किया जाएगा तो इसमें चुंबकीय क्षेत्र बढ़ेगा तथा सड़क पर अधिक बल लगने के कारण सर का विस्थापन भी बढ़ जाएगा।
(iii)  यदि छड़ AB  की लंबाई में वृद्धि कर दी जाए तो सर पर बल अधिक लगेगा तथा छड़ AB का विस्थापन में  बढ़ जाएगा।

प्रश्न 3  पश्चिम की ओर प्रक्षेपित कोई   धन आवेशित करण ( अल्फा कण)  किसी चुंबकीय क्षेत्र द्वारा उत्तर की ओर  विक्षेपित  हो जाता है।  चुंबकीय क्षेत्र की दिशा क्या है?
a)      दक्षिण की ओर
b)      पूर्व की ओर
c)      अधोमुखी
d)      उपरीमुखी
 उत्तर: (d)  उपरीमुखी

विद्युत मोटर
 विद्युत मोटर एक ऐसी युक्ति है जो  विद्युत ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में  बदल देती है।
सिद्धांत-
 जब किसी कुंडली को चुंबकीय क्षेत्र में रखकर उस में धारा प्रवाहित की जाती है तो चुंबकीय क्षेत्र कुंडली पर बल लगाता है,  इस बल की दिशा फ्लेमिंग के वाम हस्त नियम द्वारा दी जाती है।
 संरचना:  विद्युत मोटर की संरचना को चित्र में दर्शाया गया है इसके मुख्य भाग निम्नलिखित है-
 1. क्षेत्र चुंबक- विद्युत मोटर में शक्तिशाली चुंबक का प्रयोग चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करने के लिए किया जाता है।
2. आर्मेचर या कुंडली-  मोटर की क्षमता के अनुसार नरम लोहे के टुकड़े पर रोधी पॉलिश वाली चालक तांबे की तार कई बार लपेट कर आयताकार कुंडली ABCD  बनाते हैंजिसे आर्मेचर  कहते हैं.  इसे चुंबक के दोनों ध्रुवों  के मध्य में रखा जाता है 
3. विभक्त वलय (  दिक परिवर्तक)-  मोटर की कुंडली के सिरे A  क्रमशः  विभक्त  वलय P के संपर्क में रहते हैं । 
4. ब्रूश-  दिक प्रवर्तक कार्बन के  ब्रूश से संपर्क बनाए रहते हैं।
कार्य विधि:

बैटरी से चलकर विद्युत धारा कुंडली ABCD  में प्रवेश करती है।  कुंडली में विद्युत धारा की दिशा भुजा AB  में से तथा CD  में से की ओर होती है  जो  कि परस्पर विरोधी हैं.  अब चुंबकीय क्षेत्र में रखे चालक पर आरोपित बल की दिशा फ्लेमिंग के वाम हस्त नियम द्वारा ज्ञात की जाती है.  जिसके परिणाम स्वरूप हम पाते हैं कि भुजा AB  पर आरोपित बल उसे अधोमुखी (नीचे की ओर)  धकेलता  है  तथा भुजा CD  पर आरोपित बल उसे उपरीमुखी धकेलता है । आधा घूमने पर ब्रश और विभक्त वलय दिकप्रवर्तक द्वारा धारा की दिशा  पलट जाती है, जिसके परिणाम स्वरूप बलों की दिशा भी पलट जाती है जिससे कुंडली का जो पार्श्व पहले ऊपर की ओर धकेला गया था वह अब नीचे की ओर धकेला जाता है तथा जो पार्श्व पहले नीचे की ओर धकेला गया था वह ऊपर की ओर धकेला जाता है। इस प्रकार कुंडली घूर्णन करती है।

विद्युत चुंबकीय प्रेरण:
जब कोई चालक तार की कुंडली किसी चुंबकीय क्षेत्र में गति करती है अथवा इसके चारों और चुंबकीय क्षेत्र परिवर्तित होता है तो कुंडली में विद्युत धारा उत्पन्न होती है, यह घटना विद्युत चुंबकीय प्रेरण कहलाती है।
या
वह प्रक्रम जिसके द्वारा किसी चालक के परिवर्ती चुंबकीय क्षेत्र के कारण अन्य चालक में विद्युत धारा प्रेरित होती है, विद्युत चुंबकीय प्रेरण कहलाता है।

प्रयोग 1:  अनेक फेरों वाली तार की कुंडली लीजिए। तथा इसे चित्र के अनुसार एक  गैलवेनोमीटर से जोड़िए। अब प्रबल छड़ चुंबक के उत्तरी ध्रुव को कुंडली के सिरे B  की ओर जाने पर गैल्वेनोमीटर की सुई में  क्षणिक विक्षेप होता है।  विक्षेप कुंडली में विद्युत धारा की उपस्थिति का संकेत देता है।  जैसे ही चुंबक की गति रुक जाती है गैल्वेनोमीटर में  विक्षेप में शून्य  हो जाता है।   यदि हम चुंबक के उत्तर ध्रुव को कुंडली से दूर ले जाते हैं या दक्षिण ध्रुव को कुंडली के नजदीक लाते हैं तो  गैल्वेनोमीटर की सुई विपरीत दिशा में  विक्षेपित  हो जाती है जो यह दर्शाती है कि उत्पन्न विद्युत धारा की दिशा पहले से विपरीत है।
इस प्रयोग से यह स्पष्ट है कि कुंडली के सापेक्ष चुंबक की गति एक प्रेरित विभांतर उत्पन्न करती है, जिसके कारण कुंडली में प्रेरित विद्युत धारा प्रवाहित होती है।

प्रयोग 2:
 चित्र के अनुसार जब कुंडली 1  में विद्युत धारा में परिवर्तन होता है,  तो इस से संबंधित चुंबकीय क्षेत्र में परिवर्तन हो जाता है।  फल स्वरूप कुंडली 2  से संबंधित चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं में भी परिवर्तन हो जाता है जिसके कारण उसमें प्रेरित विद्युत धारा उत्पन्न होती हैं।
 कुंडली 2 में प्रेरित विद्युत धारा की दिशा ज्ञात करने के लिए हम फ्लेमिंग के दक्षिण हस्त नियम का उपयोग करते हैं।  इस नियम के अनुसार अपने दाहिने हाथ की तर्जनी, मध्यमा तथा अंगूठे को इस प्रकार पर लाइए की यह तीनों एक दूसरे से परस्पर लंबवत हो। यदि तर्जनी चुंबकीय क्षेत्र की दिशा तथा अंगूठा चालक की गति की दिशा दर्शाते हैं तो मध्यमा चालक में प्रेरित विद्युत धारा की दिशा को दर्शाएगी।


विद्युत जनित्र
विद्युत जनित्र-  यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत धारा में बदलने वाली युक्ति विद्युत जनित्र या डायनमो कहलाती है।
 सिद्धांत:  यह यंत्र विद्युत चुंबकीय प्रेरण की घटना पर आधारित है जिसमें हम यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करते हैं:
 संरचना:  विद्युत जनित्र के निम्नलिखित मुख्य भाग हैं-
i.            चुंबकीय क्षेत्र- विद्युत जनित्र में एक शक्तिशाली स्थाई चुंबक का प्रयोग चुंबकीय रेखाएं उत्पन्न करने के लिए करते हैं।  बड़े  जनित्रों में विद्युत चुंबक का प्रयोग करते हैं।
ii.            आर्मेचर या कुंडली-  जनित्र की क्षमता के अनुसार नरम लोहे की क्रोड पर तांबे की चालक तार बड़ी संख्या में लपेटते हुए कुंडली ABCD  बनाते हैंइसे आर्मेचर कहते हैं। आर्मेचर को धुरी पर व्यवस्थित करते हैं।
iii.            वलय- कुंडली की धूरी पर दो वलय R1 R2  जुड़े होते हैं जो आर्मेचर के घूमने के साथ साथ घूमते हैं।
iv.            ब्रुश : B1 tतथा B2 दो कार्बन के ब्रुश हैं जो आर्मेचर में प्रेरित धारा को   बाहरी परिपथ में ब्रुशों के माध्यम से भेजा जाता है अर्थात ब्रूश  धारा को  वांछित स्थान तक पहुंचाते हैं।    

कार्य विधि:  जब कुंडली ABCD को दक्षिणवर्ती घुमाया जाता है, तो कुंडली चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं को काटती है । फ्लेमिंग के दक्षिण हस्त नियम के अनुसार इन भुजाओं मेंAB  तथा CD दिशाओं के अनुदिश प्रेरित विद्युत धारा प्रवाहित होने लगती हैं.
अर्धघूर्णन के पश्चात भुजा CD  ऊपर की ओर भुजाAB  नीचे की ओर जाने लगती है।  फल स्वरूप इन दोनों भुजाओं में प्रेरित विद्युत धारा की दिशा परिवर्तित हो जाती है।
ऐसी विद्युत धारा जो समान काल अंतरालों के पश्चात अपने दिशा में परिवर्तन कर लेती है उसे प्रत्यावर्ती धारा (a.c.) तथा इस युक्ति को प्रत्यावर्ती विद्युत धारा (a.c.) जनित्र कहते हैं।
दिष्ट धारा प्राप्त करने के लिए विभक्त  वलय  प्रकार के  परिवर्तक का उपयोग किया जाता है।  इस व्यवस्था में एक ब्रुश  सदैव ही उस भुजा  के संपर्क में रहता है जो चुंबकीय क्षेत्र में ऊपर की ओर गति करती है जबकि दूसरा ब्रुश  सदैव नीचे की ओर गति करने वाली भुजा के संपर्क में रहता है। इस प्रकारइस व्यवस्था के साथ एक दिशिक  विद्युत धारा उत्पन्न होती है । इस प्रकार के जनित्र को दिष्ट धारा (d.c.) जनित्र कहते हैं।


दिष्ट धारा तथा प्रत्यावर्ती धारा के बीच में अंतर:  दिष्ट धारा तथा प्रत्यावर्ती धारा के बीच यंत्र है कि दिष्ट धारा सदैव एक ही दिशा में प्रवाहित होती है, जबकि प्रत्यावर्ती धारा एक निश्चित काल अंतराल के पश्चात अपने दिशा उत्क्रमित करती रहती हैं.। भारत में उत्पादित प्रत्यावर्ती धारा की आवृत्ति 50Hz  है।

सामान्य घरेलू परिपथ व्यवस्था

 हमारे घरों में विद्युत शक्ति की आपूर्ति मुख्य तारों द्वारा की जाती है। आपूर्ति में 3 तार होते हैं।
1.       विद्युन्मय या धनात्मक तार
2.       उदासीन या न्यूट्रल तार
3.       भू संपर्क तार
सामान्य घरेलू विद्युत परिपथ में से एक परिपथ का व्यवस्था आ रहे एक चित्र में दर्शाया गया है। प्रत्येक विद्युत परिपथ में  धनात्मक तार तथा उदासीन तारों के बीच विभिन्न विद्युत संयंत्रों को संयोजित किया जाता है।  प्रत्येक  साधित्र का अपना  अलग ऑन ऑफ स्विच होता है,  ताकि इच्छा अनुसार उन में विद्युत धारा प्रवाहित कराई जा सके।  सभी साधित्र को समान  वोल्टता मिल सके,  इसके लिए उन्हें पार्श्व क्रम में संयोजित किया जाता है।


अतिभारण या  ओवरलोडिंग-  किसी परिपथ में बहने वाली अधिकतम धारा का परिणाम निश्चित होता है, परिपथ में निश्चित सीमा से अधिक शक्ति के उपकरण को जोड़ने पर परिपथ में सीमा से अधिक धारा की आवश्यकता होती है, जिसे अतिभारण या ओवरलोडिंग कहते हैं। इससे बचाव के लिए परिपथ में फ्यूज का प्रयोग कर सकते हैं।
 कारण-
i.            बोल्टता वाली विद्युत धारा का प्रवाहित होना।
ii.            एक ही साकेट में कई  युक्तियों को लगा देना।

लघुपथन- किसी विद्युत युक्ति में धारा का कम प्रतिरोध से प्रवाहित हो ना लघु प्रथम कहलाता है।  इस स्थिति में परिपथ में विद्युत धारा का मान बढ़ाने से आग लग जाती है। इसके निम्नलिखित कारण है-
1.       परिपथ के अतिभारण के कारण।
2.       परिपथ का प्रतिरोध शून्य होने के कारण।
3.       विद्युन्मय तार का उदासीन तार से मिलने के कारण।
4.       परिपथ में प्रवाहित धारा का मान बढ़ने के कारण।
5.       एक साकेट में कई साधित्रों को लगाने के कारण।

भू संपर्क तार:
किसी भी विद्युत उपकरण के लिए दो तारों की आवश्यकता होती है।  पहली जिसमें से धारा गुजरती है तथा दूसरी उदासीन होती है। अधिक ऊष्मा उत्पत्ति तथा टूट फूट के कारण कभी-कभी धारा युक्त तार उपकरण के सीधे संपर्क में आ जाता है, जिसे छूने से शॉक लगता है।   शॉक से बचने के लिए उपकरण के धात्विक भाग का संबंध धरती से कर दिया जाता है।  उपकरण को तार द्वारा 3 पिन वाले पलग से जोड़ दिया जाता है।  इसे धरती में गहराई में  दबाई गई तार से जोड़ दिया जाता है। लघुपथन के समय विद्युत धारा उपकरण से सीधी धरती  में चली जाती हैं।  जिससे व्यक्ति   शॉक से बच जाता है।

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Comments

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Unknown said…
Sab please make notes for all the chapters for 10th class science
Unknown said…
SIR CLASS 10 KA SCIENCE CHAPTER 4 KA PDF KA LINK BHAGYE
Unknown said…
Nice note sir Im very happy it is very helpful for me
Unknown said…
Sir or chapter ka bhe note dal do
Unknown said…
Thanks very much sir
Unknown said…
Sir plz upload science all chapter notes Hindi medium sir plz 20date se Mera half year ka exam hai sir plz I request you
Unknown said…
all lesson pdf file
upload kijiye...love you sir
Unknown said…
Or chapter ko notes chahiye bahut achchha hai
Unknown said…
Sir please......all other lession pdf notes.
Unknown said…
Thank you so much sir for your kindness and dedication
Unknown said…
Sir is pdf ko downlod kaise kare
Unknown said…
Very nice video sr
Unknown said…
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Unknown said…
Super sir
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Much
Unknown said…
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Unknown said…
Are bhai itna very likhe ki kya jrurt thi
Unknown said…
🤣 🤣 pgl ho gye hai yee jesne bhi lhikha hoga🤣
Unknown said…
Thodi aur very likh dete bete
Unknown said…
Very Nice lacture sir
Unknown said…
Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very Very nice notes nice notes
Unknown said…
Sir ise download kaise kre
Thank you very much for this 🌹🙏❤️🙏🙏🌹🙏♥️🙏🌹
Ssti msti.com said…
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Unknown said…
Yes please sir🙏🙏
Unknown said…
Arrrr ito pyar 😂😂😂

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