Human Eye and Colorful World Notes in Hindi Class 10 Science


अध्याय 11 कक्षा 10 विज्ञान

मानव नेत्र तथा रंगबिरंगा संसार

मानव नेत्र: 
नेत्र हमारे शरीर का एक महत्वपूर्ण अंग है। हम अपने चारों ओर की दुनिया को नेत्रों की सहायता से ही देख सकते हैं। 

Video Lectures by Suresh Lecturer


मानव नेत्र की संरचना : मानव नेत्र की कार्यप्रणाली एक अत्याधुनिक ऑटोफॉक्स कैमरे की तरह होती है। नेत्र लगभग 2.3 cm व्यास का एक गोलाकार अंग है, जिसके प्रमुख भाग निम्नलिखित है-
1. श्वेत पटल (Sclera) – नेत्र के चारों ओर एक श्वेत सुरक्षा कवच बना होता है जो अपारदर्शक होता है। इसे श्वेत पटल कहते हैं। 
2. कॉर्निया (Cornea) – नेत्र के सामने श्वेत पटल के मध्य में थोड़ा उभरा हुआ भाग पारदर्शी होता है। प्रकाश की किरणे इसी भाग से अपवर्तित होकर नेत्र में प्रवेश करती है। 

3. परितारिका (Iris) – यह कॉर्निया के पीछे एक अपारदर्शी मासपेशीय रेशों की संरचना है जिसके बीच में छिद्र होता है। इसका रंग अधिकांशत: काला होता है। 
4. पुतली (Pupil) – परितारिका के बीच वाले छिद्र को पुतली कहते हैं। परितारिका की मासपेशियों के संकोचन व विस्तारण से आवश्यकतानुसार पुतली का आकार छोटा या बड़ा होता रहता है। तीव्र प्रकाश में इसका आकार छोटा हो जाता है तथा कम प्रकाश में इसका आकार बढ़ जाता है। यही कारण है कि जब हम तीव्र प्रकाश से मंद प्रकाश में जाते हैं जो कुछ समय तक नेत्र ठीक से देख नहीं पाते हैं। थोड़ी देर में पुतली का आकार बढ़ जाता है और हमें दिखाई देने लग जाता है। 
5. नेत्र लेंस/ अभिनेत्र लेंस (Eye Lens)- परितारिका के पीछे एक उत्तल लेंस होता है जो एक रेशेदार जेलीवत पदार्थ का बना होता है। यह लेंस प्रकाश की किरणों को रेटिना पर अभिसारित करता है। और वस्तु का उल्टा तथा वास्तविक प्रतिबिंब बनाता है। 
6. पक्षभामी पेशियाँ (Ciliary muscles)- पक्षभामी पेशियों के शिथिल होने या सिकुड़ने से  अभिनेत्र लेंस की वक्रता को नियंत्रित होती है। अभिनेत्र  लेंस की वक्रता में परिवर्तन होने पर इसकी फोकस दूरी भी परिवर्तित हो जाती है ताकि बस्तु का स्पष्ट प्रतिबिंब रेटिना पर बन सके और वस्तु स्पष्ट दिखाई दे सके। 
7. जलीय द्रव/नेत्रोद (Aqueous humor) – नेत्र लेंस व कॉर्निया के बीच एक पारदर्शक पतला द्रव भरा होता है जिसे नेत्रोद या जलीय द्रव कहते है। यह उचित दबाव बना कर आँख की गोल आकृति बनाए रखने में मदद करता है तथा साथ ही कॉर्निया व अन्य भागों को पोषण भी देता रहता है। 
8. रक्त पटल (choroid) – नेत्र के श्वेत पटल के नीचे एक झिल्ली नुमा संरचना होती है जो रेटिना को आक्सीजन एवं पोषण प्रदान करती है। साथ ही आँख में आने वाले प्रकाश का अवशोषण करके भीतरी दीवारों से प्रकाश के परावर्तन को अवरुद्ध करती है। 
9. दृष्टिपटल (retina) - रक्त पटल के नीचे एक पारदर्शक झिल्ली होती है जिसे दृष्टिपटल कहते हैं। वस्तु से आने वाली प्रकाश किरणें कॉर्निया एवं नेत्र लेंस से अपवर्तित होकर रेटिना पर फोकसित होती आई। रेटिना में अनेक प्रकाश सुग्राही कोशिकाएँ होती है जो प्रकाश मिलते ही सक्रिय हो जाती हैं एवं विद्युत सिग्नल उत्पन्न करती है। रेटिना से उत्पन्न प्रतिबिंब के विद्युत सिग्नल प्रकाश नाड़ी द्वारा मस्तिष्क तक पहुँचते हैं। मस्तिष्क इस उल्टे प्रतिबिंब का उचित संयोजन करके उसे सीधा दिखाता है। 
10. काचाभ द्रव (Vitreous humour) – नेत्र लेंस व रेटिना के बीच एक पारदर्शक द्रव भरा होता है जिसे काचाभ द्रव कहते हैं। 

समंजन क्षमता : मानव नेत्र का लेंस पास व दूर की वस्तुएँ देखने के लिए अपनी फोकस दूरी को समायोजित कर सकता है इसे नेत्र की समंजन क्षमता कहते हैं । लेंस की फोकस दूरी पक्षभामी पेशियों द्वारा नियंत्रित की जाती है। 

जब पक्षभामी पेशियाँ शिथिल होती है तो अभिनेत्र लेंस पतला हो जाता है, जिससे लेंस की फोकस दूरी बढ़ जाती है और हम दूर रखी वस्तुओं को स्पष्ट देख सकते हैं। 

जब पक्षभामी पेशियाँ सिकुड़ जाती है तो अभिनेत्र लेंस मोटा हो जाता है, जिससे लेंस की फोकस दूरी घट जाती है और हम निकट रखी वस्तुएँ स्पष्ट देख सकते हैं। 

नेत्र का निकट बिन्दु – नेत्र से वह कम से कम दूरी जहां पर रखी वस्तु साफ दिखाई दे उसे नेत्र का निकट बिन्दु कहते हैं । मानव नेत्र का निकट बिन्दु 25 cm होता है। 

नेत्र का दूर बिन्दु – नेत्र से वह अधिकतम दूरी जहां पर रखी वस्तु साफ दिखाई दे उसे नेत्र का दूर बिन्दु कहते हैं। मानव नेत्र के लिए दूर बिन्दु अनन्त पर होता है।

दृष्टि परास-  निकट बिन्दु व दूर बिन्दु के बीच की दूरी दृष्टि परास कहलाती है। 

दृष्टि दोष :  दृष्टि दोष प्रमुख रूप से निम्नलिखित 5 प्रकार के होते हैं।-
(i) निकट-दृष्टि दोष (Myopia)
(ii) दूर दृष्टि दोष / दीर्घ दृष्टि दोष (Hypermetropia या long sigtedness)
(iii) मोतियाबिंद (Cataract)
(iv) जरादूर दृष्टिता  (Presbyopia)
(v) दृष्टि वैषम्य या अबिन्दुकता (Astigmatism)
(vi) वर्णांधता (Color-Blindness)

(i) निकट-दृष्टि दोष (Myopia)– इस दोष में व्यक्ति निकट रखी वस्तुओं को तो स्पष्ट देख सकता है परंतु दूर रखी वस्तुओं को वह सुस्पष्ट नहीं देख पाता। 
इस दोष के कारण दूर रखी वस्तु का प्रतिबिंब दृष्टिपटल पर न बन कर उसके सामने बनाता है। 
ऐसे दोष युक्त व्यक्ति का दूर-बिन्दु अनन्त पर न होकर नेत्र के पास आ जाता है। 
निकट दृष्टि दोष के कारण : 
(i) अभिनेत्र लेंस की वक्रता का अधिक होना । 
(ii) नेत्र गोलक का लंबा हो जाना। 
निवारण – इस दोष का निवारण उपयुक्त क्षमता वाले अवतल लेंस से हो सकता है। 

चित्र- निकट दृष्टि दोष युक्त नेत्र 

चित्र – निकट दृष्टि दोष का निवारण  (संशोधित नेत्र) 
(ii) दूर दृष्टि दोष / दीर्घ दृष्टि दोष (Hypermetropia या long sigtedness) : इस दोष में व्यक्ति दूर रखी वस्तुओं को तो स्पष्ट देख सकता है परंतु निकट रखी वस्तुओं को वह सुस्पष्ट नहीं देख पाता। 
इस दोष के कारण निकट  रखी वस्तु का प्रतिबिंब दृष्टिपटल पर न बन कर उसके पीछे बनाता है। 
ऐसे दोष युक्त व्यक्ति का निकट बिन्दु सामान्य निकट बिन्दु (25 cm) से दूर हट जाता है।  
दूर दृष्टि दोष के कारण : 
(i) अभिनेत्र लेंस की फोकस दूरी अधिक होना । 
(ii) नेत्र गोलक का छोटा हो जाना। 
निवारण – इस दोष का निवारण उपयुक्त क्षमता वाले उत्तल लेंस से हो सकता है। 

चित्र- दूर  दृष्टि दोष युक्त नेत्र 
  
चित्र – दूर दृष्टि दोष का निवारण  (संशोधित नेत्र) 

(iii) मोतियाबिंद (Cataract) – आयु अधिक होने पर कुछ व्यक्तियों के नेत्र का क्रिस्टलीय लेंस दूधिया तथा धुंधला हो जाता है। जिसके कारण नेत्र की दृष्टि मे कमी या पूर्ण रूप से दृष्टि चली जाती है। यह नेत्र दोष मोतियाबिंद कहलाता है। 
इसका निवारण शल्य चिकित्सा द्वारा किया जाता है जिसमें मोतियाबिंद युक्त नेत्र लेंस को हटाकर एक कृत्रिम लेंस लगा दिया जाता है जिसे इंट्राओकुलर लेंस कहते है। 

(iv) जरादूर दृष्टिता  (Presbyopia) : आयु में वृद्धि होने के साथ-साथ नेत्र लेंस व मांसपेशियों का लचीलापन कम हो जाता है जिससे मानव नेत्र की समंजन क्षमता घट जाती है। इससे दूर दृष्टि दोष हो जाता है। कभी-कभी दोनों ही प्रकार के दोष हो सकते हैं। ऐसे में बस्तुओं को सुस्पष्ट देखने के लिए द्विफोकसी लेंसों का प्रयोग होता है। द्विफोकसी लेंसों का ऊपरी भाग अवतल व नीचे का भाग उत्तल होता है। 

(v) दृष्टि वैषम्य या अबिन्दुकता (Astigmatism): यह दृष्टि दोष कॉर्निया की गोलाई में अनियमितता के कारण होता है। इसमें व्यक्ति को समान दूरी पर रखी  उधर्वाधर व क्षैतिज रेखाएँ एक साथ स्पष्ट दिखाई नहीं देती हैं। इसके निवारण हेतु बेलनाकार लेंस का उपयोग करते हैं। 

प्रश्न : हम विभिन्न रंगों को कैसे देख पाते हैं? 
उत्तर-हमारे नेत्र के दृष्टि-पटल पर बहुत अधिक संख्या में प्रकाशा सुग्राही कोशिकाएँ होती है- शंकु तथा संशलाकाएँ। शंकु आकार वाली प्रकाश संवेदी कोशिकाएँ प्रकाश के रंगों के अनुरूप क्रिया करती हैं तथा संशलाका कोशिकाएँ प्रकाश की तीव्रता के अनुरूप क्रिया करती हैं। इनके द्वारा ही हमारी आंखे रंगों में भेद कर पाती हैं। ये कोशिकाएँ लाल, हरे व नीले रंग के प्रति अधिक सुग्राही होती हैं। 

(vi) वर्णांधता (Color-Blindness): 
उत्तर-जो व्यक्ति वर्णों में विभेदन नहीं कर सकते, वर्णांध कहलाते हैं। यह रोग वर्णांधता कहलाता है। इस रोग से पीड़ित व्यक्ति के नेत्र में शंकु कोशिकाएँ नहीं होती, जिस कारण वह रंगों का विभेदन नहीं कर सकता। यह एक आनुवांशिक दोष हैं। इस रोग का कोई उपचार नहीं है। ऐसे व्यक्तियों का ड्राइविंग लाइसेन्स नहीं बनाता। 

प्रश्न-मधुमक्खियाँ पराबैंगनी प्रकाश में कैसे देख लेती हैं? हम इस प्रकाश में क्यों नहीं देख पाते?
उत्तर- मधुमक्खियों में कुछ दृष्टि-पाटलीय शंकु होते हैं, जो परबैंगनी प्रकाश के लिए सुग्राही होते हैं। हम पराबैंगनी प्रकाश को नहीं देख पाते क्योंकि हमारी आखों के दृष्टि-पटलीय शंकु इतने छोटी तरंगदैर्ध्यों के लिए सुग्राही नहीं हैं। इसलिए मधुमक्खियाँ पराबैंगनी प्रकाश में देख लेती हैं, हम नहीं। 

दोनों नेत्रों का सिर पर सामने की ओर स्थित होने का लाभ :
· जंतुओं के नेत्र प्राय: उनके सिर पर विपरीत दिशाओं में स्थित होते हैं उनका दृष्टि क्षेत्र मानव की तुलना में अधिक होता है लेकिन जंतुओं को संसार चपटा द्विविम दिखाई देगा। क्योंकि एक नेत्र से संसार चपटा द्विविम दिखाई देता है। 
· हमारे नेत्र सिर पर सामने होने के कारण  हमें त्रिविम चाक्षुकी (three dimension vision) का लाभ मिलता है। 
· नेत्र दो होने के कारण हमारा दृष्टि-क्षेत्र विस्तृत हो जाता है। एक नेत्र का क्षैतिज दृष्टि क्षेत्र लगभग 150 डिग्री होता है जबकि दो नेत्रों द्वारा यह लगभग 180 डिग्री हो जाता है। 
· इससे हम धुंधली चीजों को भी देख पाते हैं। 

पाठ्य पुस्तक के प्रश्नोत्तर : 
प्रश्न 1 नेत्र की समंजन क्षमता से क्या अभिप्राय है?
उत्तर - Try yours self.

प्रश्न 2 निकट दृष्टि दोष का कोई व्यक्ति 1.2m से अधिक से अधिक दूरी पर रखी वस्तुओं को सुस्पष्ट नहीं देख सकता। इस दोष को दूर करने के लिए प्रयुक्त संशोधक लेंस किस प्रकार का होना चाहिए?
उत्तर – इस दोष को दूर करने के लिए अवतल लेंस का प्रयोग करना चाहिए । 

प्रश्न 3 मानव नेत्र की सामान्य दृष्टि के लिए दूर बिन्दु तथा निकट बिन्दु नेत्र से कितनी दूरी पर होते हैं?
उत्तर - मानव नेत्र का निकट बिन्दु नेत्र से 25 cm दूरी पर होता है व  दूर बिन्दु नेत्र से अनन्त दूरी पर होता है।

प्रश्न 4 अंतिम पंक्ति में बैठे किसी विद्यार्थी को श्यामपट्ट पढ़ने में कोई कठिनाई होती है। वह विद्यार्थी किस दृष्टि दोष से पीड़ित है? इसे किस प्रकार संशोधित किया जा सकता है?
उत्तर – वह विद्यार्थी निकट दृष्टि दोष से पीड़ित है तथा इसे अवतल लेंस के प्रयोग से संशोधित कर सकते हैं। 

अभ्यास प्रश्न 
प्रश्न -मानव नेत्र अभिनेत्र लेंस की फोकस दूरी को समायोजित करके विभिन्न दूरियों पर रखी वस्तुओं को फोकसित कर सकत है। ऐसा हो पाने का कारण है –
(1) जरा-दूर दृष्टिता 
(2) समंजन
(3) निकट-दृष्टि 
(4) दीर्घ-दृष्टि 
उत्तर – (2) समंजन 

प्रश्न 2 मानव नेत्र जिस भाग पर किसी वस्तु का प्रतिबिंब बनाते हैं, वह है-
(1) कार्निया
(2) परितारिका 
(3) पुतली
(4) दृष्टिपटल 
उत्तर – (4) दृष्टिपटल 

प्रश्न 3 सामान्य दृष्टि के वयस्क के लिए सुस्पष्ट दर्शन की  अल्पतम दूरी होती है लगभग –
(1) 25m
(2) 2.5 cm
(3) 25 cm
(4) 2.5m 
उत्तर (3) 25 cm

प्रश्न  4 अभिनेत्र लेंस की फोकस दूरी में  परिवर्तन किया जाता है –
(1) पुतली द्वारा 
(2) दृष्टिपटल द्वारा
(3) पक्षभामी द्वारा
(4) परितारिका द्वारा
उत्तर (3) पक्षभामी द्वारा 

प्रश्न 5 किसी व्यक्ति को अपनी दूर की दृष्टि को संशोधित करने के लिए  -5.5 D क्षमता का लेंस की आवश्यकता है। अपनी निकट की दृष्टि को संशोधित करने के लिए उसे +1.5 D क्षमता के लेंस की आवश्यकता है। संशोधित करने के लिए आवश्यक लेंस की फोकस दूरी क्या होगी? 
(i) दूर की दृष्टि के लिए 
(ii) निकट की दृष्टि के लिए 
उत्तर : (i) दूर की दृष्ट को संशोधित करने के लिए आवश्यक लेंस की क्षमता –
 
(ii) निकट दृष्टि को संशोधित करने के लिए आवश्यक लेंस की क्षमता –


प्रश्न 6 किसी निकट-दृष्टि दोष से पीड़ित व्यक्ति का दूर बिन्दु नेत्र के सामने 80cm दूरी पर है। इस दोष को संशोधित करने के लिए आवश्यक लेंस की प्रकृति तथा क्षमता क्या होगी?
उत्तर- निकट दृष्टि दोष से पीड़ित व्यक्ति का दूर बिन्दु अनंत पर होना चाहिए 

प्रश्न 7 चित्र बनाकर दर्शाइए कि दीर्घ-दृष्टि दोष कैसे संशोधित किया जाता है। एक दीर्घ-दृष्ट दोषयुक्त नेत्र का निकट बिन्दु 1m है। इस दोष को संशोधित करने के लिए आवश्यक लेंस कि क्षमता क्या होगी? यह मान लीजिए कि सामान्य नेत्र का निकट बिन्दु 25cm है। 
उत्तर- 
 

चित्र- दीर्घ-दृष्टि दोष युक्त नेत्र का निकट बिन्दु 


प्रश्न 8 सामान्य नेत्र 25cm से निकट रखी वस्तुओं को सुस्पष्ट नहीं देख पाते क्यों?
उत्तर – अभिनेत्र लेंस की समंजन क्षमता के कारण वह अपनी फोकस दूरी को समायोजित कर कर लेता है जिससे हमें  दूर व नजदीक की वस्तुएँ साफ दिखाई देती है। लेकिन अभिनेत्र लेंस की फोकस दूरी एक निश्चित न्यूनतम सीमा (25cm) से कम नहीं होती। अत: सामान्य नेत्र 25cm से निकट रखी वस्तुओं को सुस्पष्ट नहीं देख पाते। 

प्रश्न 9 जब हम नेत्र से किसी वस्तु की दूरी को बढ़ा देते हैं तो नेत्र में प्रतिबिंब दूरी का क्या होता है?
उत्तर – जब हम नेत्र से किसी वस्तु की दूरी को बढ़ा देते हैं तो नेत्र में प्रतिबिंब कि दूरी नहीं बढ़ती, क्योंकि नेत्र में समंजन क्षमता के कारण भिन्न-भिन्न स्थानों पर रखी वस्तुओं के प्रतिबिंब रेटिना पर बनते हैं। इसी कारण वस्तु की दूरी को बढ़ा देते हैं तो भी नेत्र में प्रतिबिंब कि दूरी नहीं बढ़ती। 



प्रिज्म से प्रकाश का अपवर्तन :
प्रिज्म –एक पारदर्शी त्रिभुजाकार प्रिज्म  दो त्रिभुजाकार आधार तथा तीन आयताकार पार्श्व पृष्ठ वाला काँच का टुकड़ा होता है। 
प्रिज्म कोण : प्रिज़्म के दो पार्श्व फलकों के बीच के कोण को प्रिज़्म कोण कहते हैं। 
काँच के त्रिभुज  प्रिज़्म द्वारा श्वेत प्रकाश का अपवर्तन : 

काँच के त्रिभुज  प्रिज़्म द्वारा श्वेत प्रकाश का अपवर्तन को निम्न चित्र में दर्शाया गया है ।


यहाँ PE आपतित किरण है, EF अपवर्तित किरण है तथा FS निर्गत किरण है।Ði आपतन कोण, Ðr अपवर्तन कोण तथा Ðe निर्गत कोण है।  पहले पृष्ठ AB पर प्रकाश की किरण PE  वायु से काँच में प्रवेश करती है तथा अपवर्तन के पश्चात अभिलम्ब की ओर मुड़ जाती है। दूसरे पृष्ठ AC पर प्रकाश की किरण काँच से वायु में प्रवेश करती है। अत: यह अभिलम्ब से दूर हट जाती है। 
प्रिज़्म की विशेष आकृति के कारण निर्गत किरण, आपतित किरण की दिशा से एक कोण बनाती है। इस कोण को विचलन कोण कहते हैं। चित्र में   ÐD विचलन कोण है। 
काँच के त्रिभुज  प्रिज़्म द्वारा श्वेत प्रकाश का विक्षेपण : 
सूर्य का श्वेत प्रकाश जब प्रिज़्म में से होकर गुजरता है तो प्रिज़्म श्वेत प्रकाश को सात रंगो की पट्टी में विभक्त कर देता है। ये सात रंग हैं – बैंगनी, जामुनी, नीला, हरा, पीला, नारंगी तथा लाल। प्रकाश के अवयवी वर्णों के इस बैंड को स्पेक्ट्रम (वर्णक्रम) कहते हैं। प्रकाश के अवयवी वर्णों में विभाजन को विक्षेपण कहते हैं। 


नोट:
· वर्णक्रम में दिखाई देने वाले रंगो का क्रम VIBGYOR शब्द से याद रखा जा सकता है। बैंगनी-V, जामुनी-I, नीला-B, हरा-G, पीला-Y, नारंगी-O तथा लाल-R. 
· जब श्वेत प्रकाश प्रिज्म द्वारा सात अवयवी वर्णो में विक्षेपित हो जाता है। प्रकाश के विभिन्न वर्ण, आपतित किरण के सापेक्ष अलग-अलग कोणों पर झुकते हैं। इसी कारण प्रत्येक वर्ण की किरण अलग-अलग पथ के अनुदिश निर्गत होती है। 
· बैंगनी प्रकाश सबसे अधिक झुकता है। 
· लाल प्रकाश सबसे कम झुकता है। 
· आइजक न्यूटन ने सर्वप्रथम बताया कि सूर्य का प्रकाश सात वर्णों से मिलकर बना है। उन्होने सर्वप्रथम सूर्य के प्रकाश का स्पेक्ट्रम प्राप्त करने के लिए काँच के प्रिज्म का उपयोग किया। एक दूसरा समान प्रिज्म उपयोग करके उन्होने श्वेत प्रकाश के स्पेक्ट्रम के वर्णों को और अधिक विभक्त करने का प्रयत्न किया। किन्तु उन्हें और अधिक वर्ण नहीं मिल पाए। फिर उन्होने निम्न चित्र के अनुसार एक और सर्व सम प्रिज्म पहले प्रिज्म के सापेक्ष उल्टी स्थिति में रखा। 


इससे स्पेक्ट्रम के सभी वर्ण दूसरे प्रिज्म से होकर गुजरे। उन्होने देखा कि  दूसरे प्रिज्म से श्वेत प्रकाश का किरण पुंज निर्गत हो रहा है। इस प्रेक्षण से यही निष्कर्ष निकलता है कि सूर्य का प्रकाश सात वर्णों से मिलकर बना होता है। 
· कोई भी प्रकाश जो सूर्य के प्रकाश के समान स्पेक्ट्रम बनाता है, प्राय: श्वेत प्रकाश कहलाता है। 

इंद्रधनुष – इंद्रधनुष वर्षा के पश्चात आकाश में जल के सूक्ष्म कणों में दिखाई केने वाला प्राकृतिक स्पेक्ट्रम है। यह वायुमंडल में उपस्थित जल की सूक्ष्म बूंदों द्वारा सूर्य के प्रकाश के परिक्षेपण के कारण प्राप्त होता है। इंद्रधनुष सदैव सूर्य के विपरीत दिशा में बनता है। जल की सूक्ष्म बूंदें छोटे प्रिज्मों की भांति कार्य करती हैं। ये बूंदें सूर्य के आपतित प्रकाश को अपवर्तित तथा विक्षेपित करती है, तत्पश्चात इसे आंतरिक परावर्तित करती है, अंतत: जल की बूंद से बाहर निकलते समय प्रकाश को पुन: अपवर्तित करती हैं जैसा कि चित्र में दर्शाया गया है।  प्रकाश के परिक्षेपण तथा आंतरिक परावर्तन के कारण विभिन्न वर्ण प्रेक्षक के नेत्रों तक पहुँचते हैं और इंद्रधनुष दिखाई देने लग जाता है। 

वायुमंडलीय अपवर्तन – वायुमंडल में माध्यम (वायु) की भौतिक अवस्था अस्थिर के कारण प्रकाश का अपवर्तन वायुमंडलीय अपवर्तन कहलाता है। 
· वायुमंडलीय अपवर्तन के प्रभाव 
· तारों का टिमटिमाना 
· अग्रिम सूर्योदय तथा विलम्बित सूर्यास्त 
· तारों का वास्तविक स्थिति से कुछ ऊँचाई पर प्रतीत होना। 


तारों का वास्तविक स्थिति से कुछ ऊँचाई पर प्रतीत होना। 
पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करने के पश्चात पृथ्वी की पृष्ठ पर पहुँचने तक तारे का प्रकाश निरंतर अपवर्तित हो जाता है । वायुमंडलीय अपवर्तन उसी माध्यम में होता है जिसका क्रमिक परिवर्ती (gradually changing) अपवर्तनांक हो। क्योंकि वायुमंडल तारे के प्रकाश को अभिलम्ब की ओर झुका देता है अत: क्षितिज के निकट देखने पर कोई तारा अपनी वास्तविक स्थिति से कुछ ऊंचाई पर दिखाई देता है।  

अग्रिम सूर्योदय तथा विलम्बित सूर्यास्त 
जब सूर्योदय होंने लगता है तो उससे पूर्व सूर्य से आने वाली किरणें वायुमंडल की विभिन्न घनत्व की परतों से अपवर्तित होती है। हम जानते हैं कि जैसे-जैसे हम पृथ्वी की सतह से ऊपर उठते  हैं वायुमंडल का घनत्व कम होता जाता है अत: सूर्य की किरणें पृथ्वी के वायुमंडल में बाहर से आते हुए उतरोत्तर सघन माध्यम की ओर गमन करती है एवं परिणामस्वरूप ये किरणें अभिलम्ब की ओर झुक जाती है। इसी कारण जब सूर्य क्षितिज से थोड़ा नीचे होता है तभी हमें दिखाई देने लग जाता हैं। ठीक इसी कारण से सूर्यास्त के कुछ देर बाद तक सूर्य दिखाई देता है। 


गरम वायु में से होकर देखने पर वस्तु की आभासी स्थिति में परिवर्तन होना।  
आग के तुरंत ऊपर की वायु अपने ऊपर की वायु की तुलना में अधिक गरम हो जाती है। गरम वायु अपने ऊपर की ठंडी वायु की तुलना में कम सघन होती है तथा इसका अपवर्तनांक ठंडी वायु की अपेक्षा थोड़ा कम होता है। क्योंकि अपवर्तक माध्यम (वायु) की भौतिक अवस्थाएँ स्थिर नहीं है। इसलिए गरम वायु में से होकर देखने पर वस्तु की आभासी स्थिति परिवर्तित रहती हैं। 

तारों का टिमटिमाना 
दूर स्थित तारा हमें प्रकाश के बिन्दु के समान प्रतीत होता है। चूंकि तारों से आने वाली प्रकाश किरणों का पथ थोड़ा-थोड़ा परिवर्तित होता रहता है, अत: तारे की आभासी स्थिति विचलित होती रहती है तथा आँखों में प्रवेश करने वाले तारों के प्रकाश की मात्रा झिलमिलाती रहती है। जिसके कारण कोई तारा कभी चमकीला प्रतीत होता है तो कभी धुंधला, अर्थात तारे टिमटिमाते हुए दिखाई देते है। 

ग्रह क्यों नहीं टिमटिमाते ? 
ग्रह तारों की अपेक्षा पृथ्वी के काफी निकट होते हैं। एक तारा दूर होने की वजह से छोटे दिखाई देता हैं उसे प्रकाश का बिन्दु स्रोत माना जा सकता है। जबकि पृथ्वी के काफी निकट होने के कारण ये बड़े दिखाई देते हैं और उन्हें बिन्दु स्रोत न मानकर अनेक बिन्दु स्रोतों का समूह माना जाता है। ग्रह से आने वाली प्रकाश किरणों का पथ थोड़ा-थोड़ा परिवर्तित होने के बावजूद भी सभी बिन्दु स्रोतों का समूह की परिणामी आभासी स्थिति अविचलित रहती है। अत: गृह नहीं टिमटिमाते। 

प्रकाश का प्रकीर्णन (Scattering of Light)
जब प्रकाश किसी ऐसे माध्यम से गुजरता है, जिसमे धुल तथा अन्य पदार्थों के अत्यंत सूक्ष्म कण होते है, तो इनके द्वारा प्रकाश सभी दिशाओं में प्रसारित हो जाता है, जिसे प्रकाश का प्रकीर्णन कहते हैं।

टिंडल प्रभाव – जब कोई प्रकाश किरण पुंज वायुमंडल के महीन कणों जैसे धुआँ, जल की सूक्षम बूंदे, धूल के निलंबित कण तथा वायु के अणु से टकराता है तो उस किरण पुंज का मार्ग दिखाई देने लगता है। कोलाइडी कणों के द्वारा प्रकाश के प्रकीर्णन की परिघटना टिंडल प्रभाव उत्पन्न करती है। 
उदाहरण 1. जब धुएँ या धूल से भरे किसी कमरे में किसी सूक्ष्म छिद्र से पतला प्रकाश किरण पुन: प्रवेश करता है तो टिंडल प्रभाव देख सकते हैं। 
2.  जब किसी घने जंगल के वितान (canopy) से सूर्य का प्रकाश गुजरता है तो टिंडल प्रभाव देखा जा सकता है। जंगल के कुहासे में जल की सूक्ष्म बूंदे प्रकाश का प्रकीर्णन कर देती है। 
नोट: 
· प्रकीर्णित प्रकाश का वर्ण, प्रकीर्णन करने वाले कणों के साइज पर निर्भर करता है। 
· अत्यंत सूक्ष्म कण मुख्य रूप से नीले प्रकाश को प्रकीर्ण करते हैं जबकि बड़े साइज के कण अधिक तरंगदैर्ध्य के प्रकाश को प्रकीर्ण करते हैं। 
· यदि प्रकीर्णन करने वाले कणों का साइज बहुत अधिक है तो प्रकीर्णित प्रकाश श्वेत भी हो सकता है। 
· रेले (Rayleigh) का नियम :
और अधिक के लिए पीडीएफ़ download करें
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Comments

Unknown said…
Sir pdf ka link dijiye
Unknown said…
Sir sabhi pdf paper ko chapterwise apps bana kar download kare aur hamein provide kare thanks
Suresh said…
https://drive.google.com/file/d/1VIVzT69L5mQNqF7qKEpztXOAKeKVtWqK/view?usp=sharing
link for Notes of Human Eye and Colorful world in Hindi Medium
Suresh said…
OK, work is in progress i will upload as soon as possible
Unknown said…
Thanks sir aap dil se humlogo ka help kar rahe hai.
Unknown said…
Sir 10 class ke science notes video and full pdf file provide krwauiye.... Plz....
Unknown said…
You are great sir
Unknown said…
Sir Bihar Board science k objective questions nhi mil skta
Unknown said…
Sir biology k PDF notes nhi mil sakta hai kya
Unknown said…
Sir 10th class ki science book ka chapter-13 ki videos
mangalmurthi said…
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