Notes for 10th Science | pdf free Download | Chapter 15 in Hindi

Chapter 15 Class 10 Science Notes in Hindi

अध्याय 15  हमारा पर्यावरण

पर्यावरण (Environment)

पर्यावरण (Environment) शब्द का निर्माण दो शब्दों से मिल कर हुआ है। "परि" जो हमारे चारों ओर है"आवरण" जो हमें चारों ओर से घेरे हुए है,अर्थात पर्यावरण का शाब्दिक अर्थ होता है चारों ओर से घेरे हुए।

पर्यावरण उन सभी भौतिक, रासायनिक एवं जैविक कारकों से निर्मित एक इकाई है जो प्रत्येक जीवधारी को प्रभावित करती हैं तथा हमारे चारों तरफ़ वह हमेशा व्याप्त होता है।


पारितंत्र

किसी क्षेत्र के सभी जीव तथा वातावरण के अजैव कारक संयुक्त रूप से पारितंत्र बनाते हैं।

अतः एक पारितंत्र में सभी जैव घटक जैसे कि पौधे, जंतु, सूक्ष्मजीव एवं मानव तथा अजैव घटक जैसे कि भौतिक कारक; ताप, वर्षा, वायु, मृदा एवं खनिज इत्यादि होते हैं।

पारितंत्र के प्रकार

इसके दो प्रकार होते हैं।

(a) प्राकृतिक पारितंत्र—पारितंत्र जो प्रकृति में विद्यमान हैं। उदाहरण—जंगल, सागर, झील।

(b) कृत्रिम (मानव निर्मित) पारितंत्र—जो पारितंत्र मानव ने निर्मित किए हैं, उन्हें कृत्रिम या मानव निर्मित पारितंत्र कहते हैं। उदाहरण—खेत, जलाशय, बगीचा।

पारितंत्र के घटक


(a)   अजैविक घटक: सभी निर्जीव घटक, जैसे- ताप, वर्षा, वायु, मृदा एवं खनिज इत्यादि मिलकर अजैविक घटक बनाते हैं।

(b)   जैविक घटक: सभी सजीव घटक; जैसे-पौधे, जानवर, सूक्ष्मजीव, फफूंदी आदि मिलकर जैविक घटक बनाते हैं।

जैविक घटकों के प्रकार:

आहार के आधार पर जैविक घटकों को निम्न में बाँटा गया है -

1.      उत्पादक

2.      उपभोक्ता

3.      अपघटक

 

(1) उत्पादक - सभी हरे पौधों एवं नील-हरित शैवाल जिनमें प्रकाश संश्लेषण की क्षमता होती है, उत्पादक कहलाते हैं। ये प्रकाश संश्लेषण द्वारा अपना भौजन स्वयं तैयार करते हैं।

(2) उपभोक्ता- ऐसे जीव जो उत्पादक द्वारा उत्पादित भोजन पर प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से निर्भर करते हैं, उपभोक्ता कहलाते हैं। उपभोक्ता को मुख्यतः शाकाहारी, मांसाहारी तथा सर्वाहारी एवं परजीवी में बाँटा गया है।

(i)     शाकाहारी- जो जीव केवल पौधों द्वारा उत्पादित भौजन ग्रहण करते हैं, शाकाहारी कहलाते हैं जैसे भैंस, बकरीघोड़ा, हिरण आदि

(ii)     माँसाहारी- जो जीव अन्य जन्तुओ का मांस भौजन के रूप में ग्रहण करते हैं , मांसाहारी कहलाते हैं।

(iii)   सर्वाहारी-  जो जीव पौधों द्वारा उत्पादित तथा जन्तुओं द्वारा उत्पादित दोनों प्रकार का भोजन ग्रहण करते हैं सर्वाहारी कहलाते हैं। जैसे-कौआ, मनुष्य कुत्ता , बिल्ली आदि

(iv)      परजीवी- दूसरे जीव के शरीर में रहने व भोजन लेने वाले; जैसे-घू, अमरबेल।


(3) अपघटक- फफूंदी व जीवाणु जो कि मरे हुए जीव व पौधे के जटिल पदार्थों को एंजाइमों की सहायता से सरल पदार्थों में विघटित कर देते हैं। इस प्रकार अपघटक स्रोतों की भरपाई में मदद करते हैं।

महत्त्व-अपघटक मृत जीवों के शरीरों का अपघटन करके उनके शरीर में उपस्थित विभिन्न पोषक तत्वों को ये अपघटक पुनः मृदा में पहुंचा देते हैं। इन पोषक तत्वों से मृदा की उर्वरता बढ़ती है। तथा वातावरण भी स्वच्छ होता है, अपघटकों को अपमार्जक भी कहते हैं।

 

आहार श्रृंखला

जीवों की एक ऐसी श्रृंखला है जिसमें एक जीव दूसरे जीव को भोजन के रूप में खाते हैं; आहार श्रृंखला कहलाती है।

उदाहरण:  घास चूहा साँप चील

आहार श्रृंखला का प्रत्येक चरण अथवा कड़ी एक पोषी स्तर बनाते हैं।


1.


खाद्य श्रृंखला में उत्पादक (स्वपोषी) प्रथम पोषी स्तर होते हैं जैसे उक्त शृंखला में घास प्रथम पोषी स्तर है।

2. दूसरा पोषी स्तर शाकाहारी जन्तु होते हैं जो पौधे या उनके उत्पादों को खाते हैं, जैसे-चूहा ।

3. तीसरा पोषी स्तर माँसाहारी होते हैं जो जन्तुओं को खाते हैं जैसे-सांप ।

4. चौथा पोषी स्तर सर्वोच्च मांसाहारी होता है जैसे-चील।

पोषक स्तर और अपघटक

हम चित्र में देख सकते हैं कि हर पोषक स्तर पर अपघटक क्रिया करते हैं और अपघटित पदार्थों को प्रथम पोषक स्तर के लिए उपलब्ध कराते हैं।


पोषक स्तर के द्वारा ऊर्जा का प्रवाह

पर्यावरण के विभिन्न घटकों के जीवभार व प्राथमिक उत्पादन के आधार पर इनके बीच ऊर्जा के प्रवाह का विस्तृत अध्ययन किया गया तथा यह पाया गया कि-

·       एक स्थलीय पारितंत्र में हरे पौधे की पत्तियों द्वारा प्राप्त होने वाली सौर ऊर्जा का लगभग 1% भाग खाद्य ऊर्जा में परिवर्तित करते हैं।

·       जब हरे पौधे प्राथमिक उपभोक्ता द्वारा खाए जाते हैं, ऊर्जा की बड़ी मात्रा का पर्यावरण में ऊष्मा के रूप में ह्रास होता है, कुछ मात्रा का उपयोग पाचन, विभिन्न जैव कार्यों में, वृद्धि एवं जनन में होता है। खाए हुए भोजन की मात्रा का लगभग 10% ही जैव मात्रा में बदल पाता है तथा अगले स्तर के उपभोक्ता को उपलब्ध हो पाता है।

·       10% नियम—एक पोषी स्तर से दूसरे पोषी स्तर में केवल 10% ऊर्जा का स्थानांतरण होता है जबकि 90% ऊर्जा वर्तमान पोषी स्तर में जैव क्रियाओं में उपयोग होती है। इस नियम के अनुसार अपघटकों तक बहुत कम मात्रा में ही ऊर्जा पहुंच पाती है। उदाहरण के लिए-

सूर्य पौधे (1000J) शाकाहारी (100J) माँसाहारी (10J) उच्च मांसाहारी (1J) अपघटक (0.1J)

सूर्य से प्राप्त पादपों में 1000 J ऊर्जा अपघटकों तक केवल 0.1 J ही रह जाती है।

·       क्योंकि उपभोक्ता के अगले स्तर के लिए ऊर्जा की बहुत कम मात्रा उपलब्ध हो पाती है, अतः आहार श्रृंखला सामान्यतः तीन अथवा चार चरण की होती है। प्रत्येक चरण पर ऊर्जा का ह्रास इतना अधिक होता है कि चौथे पोषी स्तर के बाद उपयोगी ऊर्जा की मात्रा बहुत कम हो जाती है।

·       पहली, ऊर्जा का प्रवाह एकदिशिक अथवा एक ही दिशा में होता है।अर्थात जैसे यह विभिन्न पोषी स्तरों पर क्रमिक स्थानांतरित होती है अपने से पहले स्तर के लिए उपलब्ध नहीं होती। उदाहरण के लिए स्वपोषी जीवों द्वारा ग्रहण की गई ऊर्जा पुनः सौर ऊर्जा में परिवर्तित नहीं होती तथा शाकाहारियों को स्थानांतरित की गई ऊर्जा पुनः स्वपोषी जीवों को उपलब्ध नहीं होती है।

 

आहार जाल

जब एक प्रकार के जीव कई प्रकार का भोजन या एक प्रकार के जीव कई प्रकार के जीवों द्वारा खाया जाता है तब आहार श्रृंखला सीधी न होकर तब जटिल हो जाती है तथा शाखान्वित शृंखलाओं एक जाल बन जाता है जिसे 'आहार जाल' कहते हैं



जैविक आवर्धन

विभिन्न साधनों द्वारा हानिकारक पदार्थों का खाद्य श्रृंखला में प्रवेश करना तथा उनका उच्च पोषी स्तर में सांद्रण जैविक आवर्धन कहलाता है। उच्च पोषी स्तर पर इन हानिकारक पदार्थों (जैसे-पीड़कनाशी, कीटनाशक) की बढ़ती हुई मात्रा उनके जीवन पर विपरीत प्रभाव डालती है। जीवों के विकास, वृद्धि तथा जनन जैसी क्रियाओं में बाधा उत्पन्न करते हैं।

पारितंत्र के विभिन्न स्तर पर जैव आवर्धन का प्रभाव भिन्न होगा क्योंकि जैसे-जैसे खाद्य श्रृंखला में पोषी स्तर बढ़ता है, विषाक्त पदार्थों की मात्रा बढ़ती जाती है

 

NCERT Questions:

प्रश्न 1. पोषी स्तर क्या हैं? एक आहार श्रृंखला का उदाहरण दीजिए तथा इसमें विभिन्न पोषी स्तर बताइए।

उत्तर-  पोषी स्तर : आहार श्रृंखला का प्रत्येक चरण अथवा कड़ी एक पोषी स्तर बनाते हैं।

उदाहरण के लिए हम एक आहार श्रृंखला लेते है:  घास चूहा साँप चील

1.      आहार श्रृंखला में उत्पादक (स्वपोषी) प्रथम पोषी स्तर होते हैं जैसे उक्त शृंखला में घास प्रथम पोषी स्तर है।

2.      दूसरा पोषी स्तर शाकाहारी जन्तु होते हैं जो पौधे या उनके उत्पादों को खाते हैं, जैसे शृंखला में -चूहा ।

3.      तीसरा पोषी स्तर माँसाहारी होते हैं जो जन्तुओं को खाते हैं जैसे शृंखला में -सांप ।

4.      चौथा पोषी स्तर सर्वोच्च मांसाहारी होता है जैसे शृंखला में -चील।

 

 2. पारितंत्र में अपमार्जकों की क्या भूमिका है?

उत्तर: अपघटक या अपमार्जक मृत जीवों के शरीरों का अपघटन करके उनके शरीर में उपस्थित विभिन्न पोषक तत्वों को ये अपघटक पुनः मृदा में पहुंचा देते हैं। इन पोषक तत्वों से मृदा की उर्वरता बढ़ती है। तथा वातावरण भी स्वच्छ होता है।

 

पर्यावरणीय समस्याएँ

वे समस्याएँ जो पर्यावरण की गुणवत्ता में कमी लाती हैं, पर्यावरणीय समस्याएँ कहलाती हैं। पर्यावरणीय समस्याएँ दो प्रकार की होती हैं

(i)       प्राकृतिक पर्यावरणीय समस्याएँ-सूखा पड़ना, बाढ़, भूकम्प, तूफान, जंगलों की आग आदि ।

(ii)    मानव निर्मित पर्यावरणीय समस्याएँ-ओजोन क्षय, विश्व उष्मण, विभिन्न प्रकार के प्रदूषण आदि ।

 

ओज़ोन परत :

ओज़ोन परत पृथ्वी के वायुमंडल की एक परत है जिसमें ओजोन गैस O3 की सघनता अपेक्षाकृत अधिक होती है।  पृथ्वी के वायुमंडल का 91% से अधिक ओज़ोन इसी परत में मौजूद है। यह मुख्यतः स्ट्रैटोस्फियर(समताप मंडल) के निचले भाग में पृथ्वी की सतह के ऊपर लगभग 10 किमी से 50 किमी की दूरी तक स्थित है, यद्यपि इसकी मोटाई मौसम और भौगोलिक दृष्टि से बदलती रहती है।

यह परत सूर्य के उच्च आवृत्ति के पराबैंगनी प्रकाश की 90-99 % मात्रा अवशोषित कर लेती है, जो पृथ्वी पर जीवन के लिये हानिकारक है। इस प्रकार यह परत पृथ्वी के जीवों को पराबैंगनी प्रकाश के कारण हो सकने वाले त्वचा कैंसर, मोतियाबिंद, कमजोर परिरक्षा तंत्र आदि से बचाती है। वास्तव में ओज़ोन परत के कारण धरती पर जीवन संभव है।

नोट: जमीनी स्तर पर ओजोन एक घातक जहर है।

 

ओजोन का निर्माण

ओजोन () का निर्माण निम्न प्रकाश-रासायनिक क्रिया का परिणाम है।


ओजोन परत का ह्रास1985 में पहली बार अंटार्टिका में ओजोन परत की मोटाई में कमी देखी गई, जिसे ओजोन छिद्र के नाम से जाना जाता है। । ओजोन की मात्रा में इस तीव्रता से गिरावट का मुख्य कारक मानव संश्लेषित रसायन क्लोरोफ्लुओरो कार्बन (CFC) को माना गया। जिनका उपयोग शीतलन एवं अग्निशमन के लिए किया जाता है।

 

ओजोन परत को ह्रास से बचाने के लिए उठाए गए कदम:  

1987 में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) में सर्वानुमति बनी की सीएफसी के उत्पादन को 1986 के स्तर पर ही सीमित रखा जाए (क्योटो प्रोटोकोल)।

 

ओजोन छिद्र के हानिकारक प्रभाव

ओजोन आवरण सूर्य के प्रकाश में उपस्थिति पराबैंगनी विकिरणों को अवशोषित कर लेता है। यदि यह पराबैंगनी किरणें पृथ्वी तल तक पहुंच जाएं तो इनसे निम्नलिखित हानि पहुँच सकती है-

1.      जीवों में त्वचा कैंसर जैसे भयानक रोग हो सकते हैं।

2.      इससे मोतियाबिंद उत्पन्न हो सकता है।

3.      फसलों को हानि पहुँच सकती है।

4.      लाभदायक  सूक्ष्मजीव पूरी तरह नष्ट हो सकते हैं।

5.      जीवों का परिरक्षा तंत्र कमजोर हो सकता है।

 

कचरा

कृषि अपशिष्ट तथा घरेलू अपशिष्ट कचरा कहलाते हैं। उदाहरण- कचरे में फल तथा सब्जियों के छिलके, पौधे की पर्तियाँ, प्लास्टिक का बेकार सामान्य, काँच की टूटी बोतलें, धातु की बेकार वस्तुएँ, पुराने कपड़े, रद्दी कागज आदि।

कचरे के पदार्थों को निम्नलिखित दो प्रकार में बाँट सकते हैं-

(a)    जैव निम्नीकरणीय पदार्थ- वे पदार्थ जो सूक्ष्मजीवों के द्वारा छोटे घटकों में बदल दिए जाते हैं, जैव निम्नीकरणीय पदार्थ कहलाते हैं। उदाहरण—फल तथा सब्जियों के छिलके, सूती कपड़ा, जूट, कागज, पौधे की पत्तियाँ आदि।

(b)    अजैव निम्नीकरण पदार्थ- पदार्थ जो सूक्ष्मजीवों के द्वारा छोटे घटकों में परिवर्तित नहीं किए जा सकते, अजैव निम्नीकरण पदार्थ कहलाते है। उदाहरण—प्लास्टिक, पॉलिथीन, संश्लिष्ट रेशे, धातु, रेडियोएक्टिव अपशिष्ट आदि।

सूक्ष्मजीव एंजाइम उत्पन्न करते हैं जो पदार्थों को छोटे घटकों में बदल देते हैं एंजाइम अपनी क्रिया में विशिष्ट होते हैं। इसलिए सभी पदार्थों का अपघटन नहीं कर सकते हैं।

 

कचरा प्रबंधन

यदि कचरे का उचित निपटान न किया जाए तो यह पर्यावरण को प्रदूषित करता है। इसलिए कचरे का निपटान वैज्ञानिक तरीके से किया जाना चाहिए। इसकी विभिन्न विधियाँ हैं। कचरे के निपटान/प्रबंधन में प्रयुक्त होने वाली विधि कचरे की प्रकृति पर निर्भर करती है।

कचरा प्रबंधन की विधियाँ

1.      जैवमात्रा संयंत्र—पशुओं का गोबर, कृषि अपशिष्ट आदि जैव निम्नीकरणीय पदार्थ (कचरा) इस संयंत्र द्वारा जैवमात्रा व खाद में परिवर्तित किए जाते हैं ।

2.      सीवेज (sewage) उपचार तंत्र - नाली या सीवेज के गंदे पानी को नदी में डालने या सिंचाई में उपयोग लेने से पहले इस तंत्र द्वारा संशोधित किया जाता है।

3.      कूड़ा भराव क्षेत्र – अधिकतर अजैव निम्नीकरणीय कचरा जिसका अन्य तरीके से प्रबंधन नहीं हो सकता निचले क्षेत्रों (गड्डों)में डाल दिया जाता है और दबा दिया जाता है, जिससे भूमि समतल हो जाती है तथा कचरे का भी निपटान हो जाता है।  

4.      कम्पोस्टिंग : जैविक कचरा कम्पोस्ट गड्डे में भर कर ढक दिया जाता है (मिट्टी के द्वारा) तीन महीने में कचरा खाद में बदल जाता है, इस प्रकार बनी खाद फसलों के लिए लाभदायक तो होती ही है साथ हीं इसमें हानिकारक रसायन भी नहीं होते ।

5.      (e ) पुनः उपयोग: यह एक पारंपारिक तरीका है जिसमें एक वस्तु का पुनः-पुनः इस्तेमाल कर सकते हैं। उदाहरण अखबार से लिफाफे बनाना।

6.      (f ) पुनःचक्रण: अजैव निम्नीकरणीय पदार्थ कचरा पुनः इस्तेमाल के लिए नए पदार्थों में बदल दिया जाता है, इस प्रक्रिया को पुन: चक्रण कहते है।  

 

1. क्या कारण है कि कुछ पदार्थ जैव निम्नीकरणीय होते हैं और कुछ अजैव निम्नीकरणीय?

उत्तर: सूक्ष्मजीव एंजाइम उत्पन्न करते हैं जो पदार्थों को छोटे घटकों में बदल देते हैं एंजाइम अपनी क्रिया में विशिष्ट होते हैं। इसलिए ये कुछ पदार्थों का अपघटन कर सकते हैं, तथा कुछ का नहीं। इसी कारण कुछ पदार्थ जैव निम्नीकरणीय होते हैं और कुछ अजैव निम्नीकरणीय होते हैं।

 

2. ऐसे दो तरीके सुझाइए जिनमें जैव निम्नीकरणीय पदार्थ पर्यावरण को प्रभावित करते हैं।

उत्तर : (1) इन पदार्थों के गलने सड़ने से वायु प्रदूषण फैलता है।

(2)  जब ये पदार्थ वर्षा के जल में मिल कर जलाशय, नदियों आदि में पहुंचते हैं तो जल प्रदूषण होता है।

 

3. ऐसे दो तरीके बताइए जिनमें अजैव निम्नीकरणीय पदार्थ पर्यावरण को प्रभावित करते हैं।

उत्तर: (1) जब इन पदार्थों को भूमि में दबाया जाता है तो इनसे भूमि प्रदूषण होता है।

(2) इनके निपटान के लिए यदि हम इसे जलाते हैं तो इनसे वायु प्रदूषण फैलता है।

 

1. ओज़ोन क्या है तथा यह किसी पारितंत्र को किस प्रकार प्रभावित करती है।

ओजोन एक गैस O3 है जो कि पृथ्वी के वायुमंडल की एक परत में मिलती है। इस परत को ओजोन परत कहते हैं। 91% से अधिक ओज़ोन इसी परत में मौजूद है। यह मुख्यतः स्ट्रैटोस्फियर(समताप मंडल) के निचले भाग में पृथ्वी की सतह के ऊपर लगभग 10 किमी से 50 किमी की दूरी तक स्थित है, यद्यपि इसकी मोटाई मौसम और भौगोलिक दृष्टि से बदलती रहती है।

पारितंत्र पर प्रभाव :

यह परत सूर्य के उच्च आवृत्ति के पराबैंगनी प्रकाश की 90-99 % मात्रा अवशोषित कर लेती है, जो पृथ्वी पर जीवन के लिये हानिकारक है। इस प्रकार यह परत पृथ्वी के जीवों को पराबैंगनी प्रकाश के कारण हो सकने वाले त्वचा कैंसर, मोतियाबिंद, कमजोर परिरक्षा तंत्र आदि से बचाती है। वास्तव में ओज़ोन परत के कारण धरती पर जीवन संभव है।

 

2. आप कचरा निपटान की समस्या कम करने में क्या योगदान कर सकते हैं? किन्हीं दो तरीकों का वर्णन कीजिए।

उत्तर: कचरा निपटान की समस्या कम करने के लिए हम निम्नलिखित तरीके अपना सकते है-

·       कम प्रयोग : बाजार में सामान खरीदने के लिए घर से थैला ले कर जाएं तो पॉलिथीन बेग का कम प्रयोग होगा।

·       पुनः उपयोग: यह एक पारंपारिक तरीका है जिसमें एक वस्तु का पुनः-पुनः इस्तेमाल कर सकते हैं। उदाहरण अखबार से लिफाफे बनाना।

 

NCERT अभ्यास के प्रश्न

1. निम्न में से कौन-से समूहों में केवल जैव निम्नीकरणीय पदार्थ हैं

(a)   घास, पुष्प तथा चमड़ा

(b)   घास, लकड़ी तथा प्लास्टिक

(c)   फलों के छिलके, केक एवं नींबू का रस

(d)   केक, लकड़ी एवं घास

Ans (c) और (d) दोनों

2. निम्न से कौन आहार श्रृंखला का निर्माण करते हैं

(a)   घास, गेहूँ तथा आम

(b)   घास, बकरी तथा मानव

(c)   बकरी, गाय तथा हाथी

(d)   घास, मछली तथा बकरी

उत्तर : (b)

3. निम्न में से कौन पर्यावरण-मित्र व्यवहार कहलाते हैं

(a)   बाजार जाते समय सामान के लिए कपड़े का थैला ले जाना

(b)   कार्य समाप्त हो जाने पर लाइट (बल्ब) तथा पंखे का स्विच बंद करना

(c)   माँ द्वारा स्कूटर से विद्यालय छोड़ने के बजाय तुम्हारा विद्यालय तक पैदल जाना

(d)   उपरोक्त सभी

उत्तर- (d) उपरोक्त सभी।

4. क्या होगा यदि हम एक पोषी स्तर के सभी जीवों को समाप्त कर दें (मार डालें)?

यदि हम एक पोषी स्तर के सभी जीवों को मार दें तो अन्य पोषी स्तर के जीवों का जीवन मुश्किल में पड़ जाएगा. क्योंकि आहार श्रृंखला का प्रथम स्तर समाप्त होने से आहार श्रृंखला टूट जाएगी।  इसी तरह से आहार श्रृंखला का दूसरा स्तर (शाकाहारी जीव) समाप्त होने पर तीसरे स्तर के जीवों के लिए भोजन की समस्या उत्पन्न हो जाएगी तथा धरती पर घास या वनस्पति की मात्रा बढ़ जाएगी।

5. क्या किसी पोषी स्तर के सभी सदस्यों को हटाने का प्रभाव भिन्न-भिन्न पोषी स्तरों के लिए अलग-अलग होगा? क्या किसी पोषी स्तर के जीवों को पारितंत्र को प्रभावित किए बिना हटाना संभव है?

उत्तर- किसी पोषी स्तर के सभी सदस्यों को हटाने का प्रभाव भिन्न-भिन्न पोषी स्तर के लिए भिन्न होता है।

(i)           उत्पादकों को हटाने से आहार श्रृंखला टूट जाएगी, दूसरे पोषी स्तर (शाकाहारियों) के जीवों को भोजन नहीं मिलेगा इसलिए वे भूख से मर जाएंगे उनके मरने के बाद उच्च पोषी स्तर की भी यही स्थिति होगी  

(ii)       दूसरे पोषी स्तर (शाकाहारियों)  को हटाने से उत्पादकों की संख्या बढ़ जाएगी जबकि मांसाहारी जीवों को भोजन नहीं मिलेगा तथा भूख से मर जाएँगे। 

(iii)        तीसरे या चौथे पोषी स्तर (मांसाहारी)  को हटाने से शाकाहारियों की संख्या बढ़ जाएगी जिससे वनस्पति की कमी हो जाएगी।

(iv)         अपघटकों को हटाने से मृत पेड़-पौधों तथा जीव जन्तुओं का ढेर लग जाएगा। जिसके कारण बीमारियाँ फैलेगी।

अतः किसी पोषी स्तर के जीवों को पारितंत्र को प्रभावित किए बिना हटाना संभव नहीं है।

6. जैविक आवर्धन (Biological magnification) क्या है? क्या पारितंत्र के विभिन्न स्तरों पर जैविक आवर्धन का प्रभाव भी भिन्न-भिन्न होगा?

उत्तर : विभिन्न साधनों द्वारा हानिकारक पदार्थों का खाद्य श्रृंखला में प्रवेश करना तथा उनका उच्च पोषी स्तर में सांद्रण जैविक आवर्धन कहलाता है। उच्च पोषी स्तर पर इन हानिकारक पदार्थों (जैसे-पीड़कनाशी, कीटनाशक) की बढ़ती हुई मात्रा उनके जीवन पर विपरीत प्रभाव डालती है। जीवों के विकास, वृद्धि तथा जनन जैसी क्रियाओं में बाधा उत्पन्न करते हैं।

पारितंत्र के विभिन्न स्तर पर जैव आवर्धन का प्रभाव भिन्न होगा क्योंकि जैसे-जैसे खाद्य श्रृंखला में पोषी स्तर बढ़ता है, विषाक्त पदार्थों की मात्रा बढ़ती जाती है

 

7. हमारे द्वारा उत्पादित अजैव निम्नीकरणीय कचरे से कौन-सी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं?

उत्तर- अजैव निम्नीकरणीय कचरे का अपघटन न होने के कारण ये लम्बे समय तक पर्यावरण में बने रहते हैं जिससे विभिन्न समस्याएँ उत्पन्न होती हैं

·       इनसे जल, वायु तथा मृदा प्रदूषण तीनों प्रकार का प्रदूषण होता है।

·       पॉलिथीन बैग/लिफ़ाफ़े जैसे पदार्थ निगलने से शाकाहारी (जैसे-गाय आदि) की मृत्यु हो जाती है। .

·       ये नालियों के बहाव में अवरोध उत्पन्न करते हैं। जिससे जल निकासी की व्यवस्था बिगड़ जाती है तथा वातावरण में दुर्गंध व गंदगी भी फैलती है।  

8. यदि हमारे द्वारा उत्पादित सारा कचरा जैव निम्नीकरणीय हो तो क्या इनका हमारे पर्यावरण पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा?

उत्तर- यदि हमारे द्वारा उत्पादित सारा कचरा जैव निम्नीकरणीय हो तो भी हमारा पर्यावरण तुलनात्मक रूप से कम प्रदूषित होगा। लेकिन जैव निम्नीकरणीय कचरा भी विभिन्न प्रकार से पर्यावरण को दूषित करता है। जैव निम्नीकरणीय कचरे से प्रदूषण तथा अन्य समस्याएँ कम उत्पन्न होती है।

9. ओज़ोन परत की क्षति हमारे लिए चिंता का विषय क्यों है। इस क्षति को सीमित करने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं?

उत्तर- ओजोन परत की क्षति हमारे लिए चिन्ता का विषय है क्योंकि यह ओजोन परत सूर्य के प्रकाश में उपस्थिति पराबैंगनी विकिरणों को अवशोषित कर लेती है। यदि यह पराबैंगनी किरणें पृथ्वी तल तक पहुंच जाएं तो इनसे निम्नलिखित हानि पहुँच सकती है-

1.      जीवों में त्वचा कैंसर जैसे भयानक रोग हो सकते हैं।

2.      इससे मोतियाबिंद उत्पन्न हो सकता है।

3.      फसलों को हानि पहुँच सकती है।

4.      लाभदायक  सूक्ष्मजीव पूरी तरह नष्ट हो सकते हैं।

5.      जीवों का परिरक्षा तंत्र कमजोर हो सकता है।

 

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