10th Science Notes in Hindi pdf | Chapter 14 Sources of Energy | Free Download

 अध्याय 14  ऊर्जा के स्रोत [Sources of Energy]

ऊर्जा-

कार्य करने की क्षमता को ऊर्जा कहते हैं।

ऊर्जा के विभिन्न रूप

ऊर्जा के विभिन्न रूप अपने दैनिक जीवन में हम ऊर्जा के विभिन्न रूपों का उपयोग करते हैं, जैसे कि ऊष्मीय ऊर्जा, प्रकाश ऊर्जा, यांत्रिक ऊर्जा, विद्युत ऊर्जा, रासायनिक ऊर्जा और ध्वनि ऊर्जा।

ऊर्जा के उपयोग

 हम इन सभी रूपों का उपयोग विभिन्न कार्यों में करते हैं। जैसे-

·       खाना बनाने के लिए ।

·       प्रकाश उत्पन्न करने के लिए ।

·       विभिन्न प्रकार की मशीनों को चलाने के लिए ।

·       उद्योगों एवं कृषि कार्य में।

ऊर्जा का रूपांतरण

ऊर्जा के रूपांतरण का अर्थ है - ऊर्जा के एक रूप को दूसरे रूप में परिवर्तित किया जा सकता है। जैसे-  

·       बिजली का बल्ब विद्युत ऊर्जा को प्रकाश ऊर्जा में बदल देता है।

·       सोलर वाटर हीटर सोर ऊर्जा को ऊष्मा ऊर्जा में बदल देता है। आदि

ऊर्जा संरक्षण नियम (Law of Conservation of Energy)

ऊर्जा संरक्षण नियम के अनुसार, किसी भौतिक अथवा रासायनिक प्रक्रम के समय कुल ऊर्जा संरक्षित रहती है। या ऊर्जा को न तो उत्पन्न किया जा सकता है और न ही नष्ट। ऊर्जा केवल एक रूप से दूसरे रूप में रूपांतरित हो सकती है।

ऊर्जा के स्रोत (Source of Energy)

कोई भी वस्तु जिससे कि उपयोग में लाई जाने वाली ऊर्जा का हम दोहन कर सकते हैं, वह ऊर्जा का स्रोत है। ऐसे विविध स्रोत हैं जो हमें विभिन्न कार्यों के लिए ऊर्जा प्रदान करते हैं जैसे-कोयला, पेट्रोल, डीजल, केरोसीन और प्राकृतिक गैस, जल-विद्युत ऊर्जा, पवन चक्कियों, सौर पेनलों, जैवभार आदि।

ऊर्जा के उत्तम स्रोत के लक्षण :

(1)   ऊर्जा के स्रोत का उच्च कैलोरोफिक माप  होना चाहिए अर्थात प्रति एंकाक द्रव्यमान, अधिक कार्य/ऊर्जा पैदा  करे । 

(2)   सस्ता एवं सरलता से सुलभ होना चाहिए ।

(3)   भण्डारण तथा परिवहन में आसान होना चाहिए ।

(4)   प्रयोग करने में आसान तथा सुरक्षित होना चाहिए ।

(5)   इसके प्रयोग से पर्यावरण प्रदूषित नहीं होना चाहिए ।


ईंधन Fuel :

वह पदार्थ जो जलने पर ऊष्मा तथा प्रकाश देता है, ईंधन कहलाता है।

अच्छे ईंधन के गुण :

(1)   उच्च कैलोरोफिक माप अर्थात प्रति एंकाक द्रव्यमान, अधिक ऊष्मा पैदा  करे ।

(2)   ज्वलन ताप मध्यम होना चाहिए।

(3)   सस्ता व आसानी से उपलब्ध होना चाहिए ।

(4)   प्रयोग में आसान अर्थात आसानी से जलना चाहिए ।

(5)   भडारण व परिवहन में आसान होना चाहिए ।

(6)   अधिक धुआँ या हानिकारक गैसें उत्पन्न नहीं होनी चाहिए ।

 

NCERT Questions

1.      ऊर्जा का उत्तम स्रोत किसे कहते हैं?

2.      उत्तम ईंधन किसे कहते हैं?

3.      यदि आप अपने भोजन को गरम करने के लिए किसी भी ऊर्जा-स्रोत का उपयोग कर सकते हैं तो आप किसका उपयोग करेंगे और क्यों?

उत्तर- हम खाना गर्म करने के लिए ऐसे ऊर्जा स्रोत का उपयोग करेंगे जिसका-

(1)   ज्वलन ताप मध्यम होना चाहिए।

(2)   सस्ता व आसानी से उपलब्ध होना चाहिए ।

(3)   प्रयोग में आसान अर्थात आसानी से जलना चाहिए ।

(4)   भडारण व परिवहन में आसान होना चाहिए ।

(5)   अधिक धुआँ या हानिकारक गैसें उत्पन्न नहीं होनी चाहिए ।

उदाहरण के लिए LPG


ऊर्जा के स्रोत के प्रकार

(1)   पारंपरिक स्रोत

(2)   वैकल्पिक/गैर पारंपरिक स्रोत

(1)   पारंपरिक स्रोत वैकल्पिक/गैर पारंपरिक स्रोत- ऊर्जा के वे स्रोत जो जनसाधारण द्वारा वर्षों से प्रयोग किए जाते हैं, ऊर्जा पारंपरिक स्रोत कहलाते हैं। उदाहरण-  जीवाश्म ईंधन (कोयला, पेट्रोलियम) तापीय विद्युत संयंत्र जल विद्युत संयंत्र जैव मात्रा (बायो मास) पवन ऊर्जा

(2)   वैकल्पिक/गैर पारंपरिक स्रोत - सौर ऊर्जा (सौर कुकर सौर पैनल) समुद्रों से ऊर्जा-ज्वारीय, तरंग, महासागरीय भूतापीय ऊर्जा नाभिकीय ऊर्जा

 

ऊर्जा के सभी स्रोतों को हम इस तरह से भी दो भागों में बाँट सकते हैं-

1.      अनवीकरणीय या समाप्य स्रोत ।

2.      नवीकरणीय  स्रोत या अक्षय स्रोत ।

1.      अनवीकरणीय या समाप्य स्रोत - ऊर्जा के वे प्राकृतिक स्त्रोत जो किसी न किसी दिन अवश्य समाप्त हो जायेंगे और जिनका एक बार उपयोग करने के पश्चात् दोबारा पूर्ति नहीं की जा सकती।  अनवीकरणीय ऊर्जा स्रोत या समाप्य स्रोत कहलाते हैं, जैसे कोयला, पेट्रोलियम आदि ।

2.      नवीकरणीय  स्रोत या अक्षय स्रोत - ऊर्जा के कुछ स्रोतों की एक लघु समय अवधि के बाद दोबारा पूर्ति की जा सकती है। इस प्रकार के ऊर्जा के स्रोतों को नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत ऊर्जा या अक्षय ऊर्जा स्रोत कहते हैं, जैसे लकड़ी, पवन ऊर्जा आदि ।

 

पारंपरिक स्रोत वैकल्पिक/गैर पारंपरिक स्रोत-

(a)   जीवाश्म ईंधन (कोयला, पेट्रोलियम)

(b)   तापीय विद्युत संयंत्र

(c)   जल विद्युत संयंत्र

(d)   जैव मात्रा (बायो मास)

(e)   पवन ऊर्जा

(a) जीवाश्म ईंधन :

पृथ्वी के अन्दर गहराई में, वक्षों तथा जानवरों की पीढियाँ नष्ट होकर दबती चली गई तथा वह अत्यधिक दाब के कारण ईंधन में परिवर्तित हो गयी। ऐसे ईंधन को जीवाश्म ईंधन कहते हैं। जैसे कोयला, प्राकृतिक गैस, पेट्रोलियम आदि।

·       ये प्राथमिक स्रोत हैं जिनसे आज विश्व में विद्युत ऊर्जा का उत्पादन किया जा रहा है। हमारी जरूरत का लगभग 85% भाग जीवाश्म ईंधनों के दहन द्वारा पूरा किया जाता है।

·       इन ईंधनों का प्रमुख घटक कार्बन होता है।

·       जीवाश्म ईंधन हमारे यातायात की आवश्यकताओं के लिए बहुत उपयोगी ऊर्जा के स्रोत हैं।


i.   कोयला:  कोयलों का निर्माण भी अन्य जीवाश्म ईंधनों की तरह होता है। परन्तु इसके निर्माण की प्रक्रिया "कोयलाभवन" (कोलिफिकेशन) के द्वारा होती है। उच्च ताप व दाब की स्थिति में अपघटित पादप पदार्थों द्वारा कोयला बनता है, हालाँकि इस प्रक्रिया में दूसरे ईंधनों के निर्माण की अपेक्षाकृत कम समय लगता है।

कोयले भी कई प्रकार के होते हैं जैसे कि पीट, लिग्नाइट, उप-बिटुमेनी और बिटुमेनी।

पीट: पहली प्रकार का कोयला पीट कोयला है जो मृत व अपघटित पादप पदार्थों का संग्रह मात्र है। विगत काल में पीट को लकड़ी के विकल्प के रूप में ईंधन की तरह प्रयोग किया जाता था।

लिग्नाइट : पीट धीरे-धीरे लिग्नाइट में रूपान्तरित हो जाता है। यह भूरे रंग की चट्टानों के रूप में मिलता है जिसमें कि पादप पदार्थों को भी पहचाना जा सकता है और इसका कैलोरी मान बिटुमेनी के कैलोरी मान से थोड़ा कम होता है। मुख्यतया पीट से कोयला (बिटुमेनी) बनने की अवस्था में लिग्नाइट बीच की अवस्था में आता है।

उप–बिटुमेनी : इसके बाद की अवस्था उप–बिटुमेनी अवस्था है, जो हल्के काले रंग की संरचना होती है और जिसमें बहुत कम दृश्य पादप पदार्थ होता है। इस प्रकार के कोयले का कैलोरी मान आदर्श कैलोरी मान से कम होता है।

बिटुमेनी : बिटुमेनी कोयला सर्वोत्तम प्रकार का कोयला है। यह एकदम काला, बहुत सघन और भंगुर होता है। इस प्रकार के कोयला का कैलोरी मान सर्वाधिक होता है।


ii.      पेट्रोलियम: यह एक जीवाश्म ईंधन है। पेट्रोलियम का अर्थ है चट्टानों का तेल, वास्तव में पेट्रोलियम अनेक हाइड्रोकार्बनों का मिश्रण होता है पेट्रोलियम से प्रभाजी आसवन विधि द्वारा केरोसिन, पेट्रोल, पेट्रोलियम गैस, डीजल, मोम, स्नेहक तेल आदि पदार्थ प्राप्त होते हैं।


iii.   प्राकृतिक गैस: प्राकृतिक गैस एक महत्त्वपूर्ण ईंधन है जो पेट्रोलियम से प्राप्त होता प्राकृतिक गैसें मुख्य रूप से मेथेन के साथ सूक्ष्म मात्रा में ऐथेन तथा प्रोपेन बनी होती है।

 

(b) तापीय विद्युत संयंत्र

इस संयंत्र में विशाल मात्रा में जीवाश्मी ईंधन का दहन किया जाता है जिससे प्रचुर परिमाण में ऊष्मा की उत्पत्ति होती है। इस ऊष्मा का उपयोग बॉयलर में भरे पानी को वाष्प में बदलने के लिए किया जाता है। इस वाष्प का प्रसार होता है जिससे कि बॉयलर में दाब बढ़ता है। बॉयलर के निवास सिरे पर एक वाष्प-टरबाइन लगा रहता है। जैसे-जैसे भाप उस सिरे से निकलती है टरबाइन घूमता रहता है। इस प्रक्रिया में वाष्प की ऊर्जा यांत्रिक ऊर्जा में बदल जाती है। घूमते हुए टरबाइन का उपयोग विद्युत जनरेटर में एक चुम्बक को घुमाने में किया जाता है।

इस प्रकार विद्युत ऊर्जा का उत्पादन होता है। यह विद्युत राष्ट्रीय पावर ग्रिड को भेजी जाती है और वहाँ से यह विभिन्न भागों में वितरित की जाती है।


जीवाश्म ईंधनों के उपयोग से होने वाली हानियां

  1. जीवाश्म ईंधनों को ऊर्जा के स्रोतों के रूप में उपयोग करने पर सबसे बड़ी हानि इनसे उत्पन्न प्रदूषण है। जीवाश्म ईंधनों के दहन की प्रक्रिया में बहुत अधिक मात्रा में विषैली गैसें (कोयलों का उपयोग करने पर उड़न राख) बनती हैं जो कि पर्यावरण को संदूषित करती हैं।
  2. इन गैसों में कार्बन डाइऑक्साइड भी होती है जो कि सूर्य की किरणों को रोक लेती हैं और ग्लोबल वार्मिंग का कारण बनती है।
  3. कार्बन डाइऑक्साइड के अलावा कोयले के जलने पर सल्फर डाइऑक्साइड भी बनती है जो कि अम्लीय वर्षा का कारण बन सकती है। जीवाश्म
  4.  ईंधनों की आपूर्ति सीमित है और इनकी बहुत जल्दी पुनःपूर्ति नहीं की सकती। जिस दर से आज इनका उपयोग किया जा रहा है, इनके भंडार जल्दी ही खत्म हो जाएँगे।
  5. कोयला समेत अन्य जीवाश्म ईंधनों को प्राप्त करने की प्रक्रिया में बहुत बड़े भू-भागों का विनाश होता है जिससे उन भू-भागों में पर्यावरणीय संतुलन बिगड़ने का खतरा उत्पन्न हो जाता है।
  6. जीवाश्म ईंधनों, जिनमें कोयला भी शामिल है, को जमीन के अन्दर से निकालना बहुत कठिन कार्य है और इसे सबसे खतरनाक कामों में गिना जाता है। कई बार इससे खदानों में काम करने वाले लोगों की जान भी चली जाती है। 
  7. प्राकृतिक गैसों का उपयोग करने पर वातावरण में एक अप्रिय सी गंध फैल जाती है।


जीवाश्म ईंधन से उत्पन्न प्रदूषण को कम करने के उपाय :

1.      दहन प्रक्रम की दक्षता में वृद्धि कर।

2.    विविध तकनीकों का प्रयोग कर, दहन के फलस्वरूप उत्पन्न गैसों के वातावरण में पलायन को कम करना।

(c)  जल विद्युत संयंत्र

जल विद्युत उत्पन्न करने के लिए नदियों के बहाव को रोककर बड़े जलाशयों (कृत्रिम झीलों) में जल एकत्र करने के लिए ऊँचे-ऊँचे बाँध बनाए जाते हैं। बाँध के ऊपरी भाग से पाइपों द्वारा जल टरबाइन के ब्लेडों पर गिराया जाता है। घूर्णन करता हुआ टरबाइन आर्मेचर को भी घुमाता है, जिससे विद्युत पैदा होती है।

चूँकि हर बार जब भी वर्षा होती है, जलाशय पुनः जल से भर जाते हैं, इसीलिए जल विद्युत ऊर्जा एक नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत है। अतः हमें जल विद्युत स्रोतों के समाप्त होने की कोई चिंता नहीं होती।


जल विद्युत ऊर्जा के लाभ

  • जल विद्युत ऊर्जा के रूप में यह ऊर्जा का एक नवीकरणीय स्रोत है।
  • इसमें लागत के संगत उत्पादन होता है तथा अन्य अनवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की तुलना में यह अधिक उत्पादक भी है।
  • इसमें विद्युत का सतत उत्पादन किया जा सकता है क्योंकि कोई बाह्य कारक नहीं हैं जो पानी की उपलब्धता को बाधित करें।
  • इससे न तो कोई अपशिष्ट बनता है तथा न ही प्रदूषण फैलता है क्योंकि इसमें रासायनिक पदार्थों का प्रयोग नहीं होता।
  • विद्युत ऊर्जा के उत्पादन के काम आने वाले पानी को सिंचाई व अन्य कृषि कार्यों में पुनः उपयोग किया जा सकता है।
  • यह बाढ़ को रोकने में सहायक है।


जल विद्युत ऊर्जा के उपयोग की सीमाएं

यद्यपि विद्युत ऊर्जा के उत्पादन के लिए पानी बहुत ही प्रभावी स्रोत है, परन्तु इसकी भी कुछ सीमाएं हैं :

  • जल विद्युत ऊर्जा संयंत्र को हम अपने इच्छानुसार हर कहीं पर नहीं लगा सकते हैं। जहाँ पर भी इनको लगाया जाए वहाँ बहुत प्रबल जलधारा अथवा काफी ऊँचाई के जलस्रोत का होना आवश्यक है ताकि पर्याप्त मात्रा में विद्युत उत्पादन हो सके।
  • ऊर्जा के उत्पादन के लिए पर्याप्त परिणाम व सतत रूप से प्रबल जल धारा की उपलब्धता आवश्यक है
  •  बाँध बंधाने में अत्यधिक लागत आती है।
  • बांध बनाने में काफी कृषि योग्य भूमि प्रयोग होती है।
  • जिस भूमि पर बांध बनता है उस पर रहने वाले बहुत से स्थलीय जीव मर  जाते हैं।

 

(d) जैव मात्रा (बायो मास)

कृषि व जन्तु अपशिष्ट जिन्हें ईंधन के रूप में उपयोग किया जाता है, जैव मात्र या बायो मास कहलाते हैं। जैसे-लकड़ी, गोबर, सूखे तने, पत्ते आदि।


(i)       लकड़ी : लकड़ी जैव मात्रा का एक रूप है जिसे लम्बे समय से ईंधन के रुप में प्रयोग किया जाता है।

हानियाँ :

  • जलने पर बहुत अधिक धुआँ उत्पन्न करती है, जिससे वायु प्रदूषण होता है।
  • लकड़ी का ऊष्मीय मान कम होता है।
  • पूर्ण दहन न  होने के कारण राख बनती है।

अत: उपकरणों की तकनीकी में सुधार करके परंपरागत ऊर्जा स्रोतों की दक्षता बढ़ाई जा सकती है। जैसे-लकड़ी से चारकोल बनाना।


(ii ) चारकोल : लकड़ी को वायु की सीमित आपूर्ति में जलाने से उसमें उपस्थित जल तथा वाष्पशील पदार्थ बाहर निकल जाते हैं और अवशेष के रुप में चारकोल प्राप्त होता है।

चारकोल, लकड़ी से बेहतर ईंधन है क्योंकि

  • बिना ज्वाला के जलता है।
  • लकड़ी की अपेक्षा कम धुआँ निकलता है।
  • चारकोल का ऊष्मीय मान लकड़ी की अपेक्षा अधिक होता है।


(iii ) गोबर के उपले : ये पशुओं के गोबर से बनते है तथा परंपरागत चूल्हे में ईंधन के रूप में उपयोग होते है। यह जैव मात्रा का एक रूप है।

गोबर के उपले को ईंधन के रूप में प्रयोग करने में कई हानियाँ, जैसे -

  • जलने पर पूर्ण दहन नहीं होता जिससे बहुत अधिक धुआँ उत्पन्न  होता है जो कि वायु प्रदूषण करता है।
  • गोबर के उपले का ऊष्मीय मान कम होता है।
  • पूर्ण दहन न  होने के कारण राख बनती है।

परन्तु तकनीकी सहायता से, गोबर का उपयोग गोबर गैस संयत्र में होने पर वह एक सस्ता व उत्तम ईंधन बन जाता है।

ऊर्जा के पारंपरिक स्रोतों के उपयोग के लिए प्रौद्योगिकी में सुधार

(iv) बायो गैस संयंत्र

संरचना-बायो गैस संयंत्र के मुख्य रूप से तीन भाग होते है- संपाचक टैंक, मिश्रण टंकी तथा निर्गम टंकी।

संपाचक टैंक या संपाचित्र (डाइजेस्टर) संयंत्र के बीच का भाग होता है जो कि ईंटों का बना हुआ एक बड़ा तथा बंद गड्डा  होता है। इसकी  छत गुम्बदाकार होती है जो सीमेंट की बनी होती है। छत में एक गैस निकास वाल्व युक्त पाइप लगा होता है। गैस इसी गुम्बद में इकट्टा होती है। संपाचक दो अन्य छोटे टैंकों मिश्रण टंकी तथा निर्गम टंकी से जुड़ा होता है। मिश्रण टंकी में गोबर व पानी का मिश्रण डाल जाता है। तथा निर्गम टंकी में गैस बनाने के बाद बची स्लरी निर्गम पाइप द्वारा पहुंचती है।

कार्यविधि : जैव गैस बनाने के लिए मिश्रण टंकी में गोबर तथा जल का एक गाढ़ा घोल, जिसे कर्दम (slurry) कहते हैं, बनाया जाता है जहाँ से इसे संपाचित्र (digester) में डाल देते हैं। संपाचित्र चारों ओर से बंद एक कक्ष होता है जिसमें ऑक्सीजन नहीं होती। अवायवीय सूक्ष्मजीव जिन्हें जीवित रहने के लिए ऑक्सीजन की आवश्यकता नहीं होती, गोबर की स्लरी के जटिल यौगिकों का अपघटन कर देते हैं। अपघटन-प्रक्रम पूरा होने तथा इसके फलस्वरूप मेथैन, कार्बन डाइऑक्साइड, हाइड्रोजन तथा हाइड्रोजन सल्फाइड जैसी गैसें उत्पन्न होने में कुछ दिन लगते हैं। जैव गैस को संपाचित्र के ऊपर बनी गैस टंकी में संचित किया जाता है। जैव गैस को गैस टंकी से उपयोग के लिए पाइपों द्वारा बाहर निकाल लिया जाता है। जैवगैस संयंत्र में शेष बची स्लरी को समय-समय पर संयंत्र से बाहर निकालते हैं।



जैव गैस एक उत्तम ईंधन है क्योंकि – (या बायो गैस के लाभ )

  • इसमें 75 प्रतिशत तक मेथेन गैस होती है। यह धुआँ उत्पन्न किए बिना जलती है।
  • लकड़ी, चारकोल तथा कोयले के विपरीत जैव गैस के जलने के पश्चात राख जैसा कोई अपशिष्ट शेष नहीं बचता।
  • इसकी तापन क्षमता उच्च होती है।
  • जैव गैस का उपयोग प्रकाश के स्रोत के रूप में भी किया जाता है।
  • जैव गैस बनने के बाद बची स्लरी में नाइट्रोजन तथा फॉस्फोरस प्रचुर मात्रा में होते हैं, अतः यह एक उत्तम खाद के रूप में काम आती है।
  • अपशिष्ट पदार्थों के निपटारे का सुरक्षित उपाय भी मिल जाता है।
  • जैव-मात्रा ऊर्जा का नवीकरणीय स्रोत है।
  • जैव-मात्रा ऊर्जा का नवीकरणीय स्रोत है।

इस प्रकार जैव अपशिष्टों व वाहित मल के उपयोग द्वारा जैव गैस निर्मित करने से हमारे कई उद्देश्यों की पूर्ति हो जाती है।


(e)  पवन ऊर्जा :

सूर्य विकिरणों द्वारा भूखंडों तथा जलाशयों के असमान गर्म होने के कारण वायु में गति उत्पन्न होती है तथा पवनों का प्रवाह होता है।

पवनों की गतिज ऊर्जा का उपयोग : इसका उपयोग पवन चक्कियों द्वारा परंपरागत रूप से जल को कुओं से खींचने में तथा अनाज चक्कियों के चलाने में में किया जाता है लेकिन आधुनिक समय में इसका उपयोग विद्युत उत्पन्न करने के लिए किया जाता है।

पवनचक्की की कार्य प्रणाली:  पवनचक्की मूलतः पवन ऊर्जा को ऊर्जा के अन्य किसी रूप में परिवर्तित करने की एक यांत्रिक व्यवस्था है। इसमें पंखुड़ियाँ लगी होती हैं। ये पंखुड़ियाँ ऊर्ध्वाधर तल, जिसे बहते पवन के लम्बवत रख पाता है, में घूमती है। जैसे ही पंखुड़ियों को काटती हुई हवा चलती है वैसे ही पंखुड़ियाँ घूमना शुरू कर देती हैं। पंखुड़ियों के घूमने से टरबाइन घूमना आरंभ करती है। टरबाइन एक विद्युत जनरेटर से जुड़ा होता है जो टरबाइन की यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में रुपान्तरित करने का काम करता है। पंखुड़ियाँ हवा के साथ इस प्रकार कोण बनाती है कि जब वे घूमे तो विद्युत का अधिकाधिक उत्पादन हो।

एकल पवन चक्की से बहुत कम उत्पादन होता है, इसीलिए बहुत सारी पवन चक्कियों को एक साथ स्थापित किया जाता है और यह स्थान पवन ऊर्जा फार्म कहलाता है। 25 km/h की पवन गति पवन चक्कियों की पंखुड़ियों को घूमाने के लिए इष्टतम मानी जाती है।


पवन ऊर्जा के लाभ

  • पवन ऊर्जा पर्यावरणीय प्रदूषण पैदा करने वाली कोई गैस या अन्य उप-उत्पाद उत्पन्न नहीं करती है।
  • पवन एक नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत है, अतः यह कभी खत्म नहीं होगा।
  • पवनचक्की लगे स्थानों के नीचे की जमीन का प्रयोग भी कृषि कार्यों में हो सकता है।
  • पवन फॉर्म समुद्र तट से दूर भी बनाए जा सकते हैं।
  • कहीं-कहीं पवन फॉर्म पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र भी बन सकते हैं।
  • इसकी लागत बहुत कम है।


पवन ऊर्जा की सीमाएँ

  • पवन ऊर्जा हर समय, हर जगह उत्पन्न नहीं हो सकती है।
  • जब पवन चल रही हो उसी समय इसका उपयोग करना पड़ता है। इसे संग्रहित करके नहीं रखा जा सकता है।
  • लगातार ऊर्जा उत्पादन के लिए अनवरत व समान गति से बहने वाली पवन की आवश्यकता होती है।
  • यदि पवन की गति घट जाती है तो टरबाइन धीमी गति से घूमेगा तथा कम ऊर्जा उत्पन्न होगी।
  •  पवन फॉर्म बहुत शोर करते हैं।
  • बड़े-बड़े पवन फॉर्म, प्राकृतिक दृश्यों की सुन्दरता में प्रतिकूल प्रभाव उत्पन्न कर सकते हैं।
  • वन्य जीवों, खासकर पक्षी जो उस क्षेत्र में उड़ते हैं, को ये फॉर्म क्षति पहुँचाने वाले होते हैं।


Note

  • डेनमार्क को "पवनों का देश" कहते हैं। देश की 25 प्रतिशत से भी अधिक विद्युत की पूर्ति पवन-चक्कियों के विशाल नेटवर्क द्वारा विद्युत उत्पन्न करके की जाती है।
  • भारत का पवन ऊर्जा द्वारा विद्युत उत्पादन करने वाले देशों में पाँचवाँ स्थान है।
  • यदि हम पवनों द्वारा विद्युत उत्पादन की अपनी क्षमता का पूरा उपयोग करें तो अनुमानों के अनुसार लगभग 45,000 MW विद्युत शक्ति का उत्पादन कर सकते हैं।
  • तमिलनाडु में कन्याकुमारी के समीप भारत का विशालतम पवन ऊर्जा फार्म स्थापित किया गया है। यह 380 MW विद्युत उत्पन्न करता है।


NCERT Questions

1. जीवाश्मी ईंधन की क्या हानियाँ हैं?

2. हम ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों की ओर क्यों ध्यान दे रहे हैं?

उत्तर : प्रौद्योगिकी में उन्नति के साथ ही ऊर्जा की माँग में दिन-प्रतिदिन वृद्धि है। अत: ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों की आवश्यकता है।

कारण :

1. जीवाश्म ईंधन सीमित मात्रा में उपलब्ध है, यदि वर्तमान दर से हम उनका उपयोग करते रहे तो वे शीघ्र समाप्त हो जायेंगे।

2. जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता को कम करने हेतु जिससे कि वे लम्बे समय तक चल सकें।

3. पर्यावरण को बचाने व प्रदूषण दर को कम करने हेतु ।

3. हमारी सुविधा के लिए पवनों तथा जल ऊर्जा के पारंपरिक उपयोग में किस प्रकार के सुधार किए गए हैं?


उत्तर- पवन ऊर्जा तथा जल ऊर्जा का उपयोग प्राचीनकाल से ही प्रचलित है। वर्तमान में इनके उपयोग के लिए उपयोग की जाने वाली तकनीक में सुधार किए गए हैं, जिससे ये सस्ते तथा सरल ऊर्जा स्रोतों के रूप में विकसित हो सके।

पवन ऊर्जा-पवन ऊर्जा का उपयोग पवन चक्कियों द्वारा पहले आटा पीसने तथा पानी उठाने के लिए किया जाता था। आधुनिक तकनीक विकसित करके अब पवन ऊर्जा का उपयोग पवन अक्कियों द्वारा विद्युत उत्पादन में किया जाता है।

जल ऊर्जा-बहते जल की ऊर्जा का उपयोग लकड़ी के भारी लट्ठों के परिवहन के लिए किया जाता था। परंतु अब बांध बनाकर जल ऊर्जा का उपयोग विद्युत उत्पादन में किया जाता है। हमारी ऊर्जा की आवश्यकता का लगभग 35% भाग जल विद्युत ऊर्जा से पूरा होता है।

बायो मास : लकड़ी को चारकोल में बदल कर प्रयोग किया जाता है तथा गोबर के उपले के जगह बायो-गैस प्लांट का प्रयोग किया गया है।


(2) वैकल्पिक/गैर पारंपरिक स्रोत

·       सौर ऊर्जा (सौर कुकर सौर पैनल)

·       समुद्रों से ऊर्जा-ज्वारीय, तरंग, महासागरीय भूतापीय ऊर्जा

·       नाभिकीय ऊर्जा

 

सौर ऊर्जा

सूर्य ऊर्जा का एक प्रमुख स्रोत है। सूर्य से प्राप्त ऊर्जा को सौर ऊर्जा कहते हैं।

सौर स्थिरांक -

पृथ्वी के सतह पर प्रति वर्ग मीटर क्षेत्रफल पर 1 सेकेण्ड में आने वाली सौर ऊर्जा को सौर स्थिरांक कहते हैं। इसका मान 1.4 kJ/s/m2  or 1.4 kW/m2


सौर ऊर्जा युक्तियाँ

(1) सौर ऊर्जा को ऊष्मा के रूप में एकत्रित करके उपयोग करना - सौर कुकर तथा सौर जल तापक

(2) सौर ऊर्जा को विद्युत में रूपांतरित करके उपयोग करना - सौर सैल

सोलर कुकर (Solar Cooker) या सौर कुकर : सोलर कुकर एक युक्ति हैं जिसे सूर्य द्वारा विकरित ऊष्मा ऊर्जा का उपयोग करके खाना पकाने के लिए प्रयोग किया जाता है।

सोलर कुकर के निर्माण में निमलिखित सिद्धांतों का प्रयोग किया जाता है-

·  काला पृष्ठ अधिक ऊष्मा अवशोषित करता है अतः इन युक्तियों में काले रंग का प्रयोग किया जाता है।

·  सूर्य की किरणों फोकसित करने के लिए दर्पणों तथा काँच की शीट का प्रयोग किया जाता है जिससे पौधाघर प्रभाव उत्पन्न हो जाता है तथा उच्च ताप उत्पन्न हो जाता है।


बाक्स रूपी सौर कुकर

सोलर कुकर एक रोधी धातु या लकड़ी के बक्से का बना होता है। जो भीतर से पूर्णतः काले रंग का होता है। पकाए जाने वाले भोजन को धातु पात्रों में रखते हैं। जो बाहर से काले रंग के होते हैं। तत्पश्चात् धातु पात्रों को सौर कुकर बाक्से के अन्दर रखते हैं, और काँच शीट से ढंक देते हैं।

सोलर कुकर में सूर्य की किरणों को फोकसित  करने के लिए दर्पण का उपयोग किया जाता है जिससे इनका ताप और उच्च हो जाता है। एक बार सूर्य की ऊष्मा किरणें कुकर बक्से में प्रवेश कर जाती हैं, तो काँच का ढक्कन उन्हें वापस बाहर जाने नहीं देता है। इस तरह सूर्य की अधिकाधिक ऊष्मा किरणें बक्से में रोक ली जाती हैं जिसके कारण सौर कुकर बक्से में तापमान दो से तीन घण्टे में ही लगभग 100°C से अधिक बढ़ जाता है। यह ऊष्मा काले पात्रों में रखी भोजन सामग्रियों जैसे- चावल, दालों और सब्जियों को पकाने के लिए प्रयुक्त की जाती हैं।


गोलीय परावर्तक युक्त सौर-कुकर: गोलीय परावर्तक युक्त सौर-कुकर की संरचना लगभग  बाक्स रूपी सौर  कुकर जैसी होती है परंतु निम्नलिखित अंतर है-

1. इसका परावर्तक तल गोलीय होता है।

2. इसमें उच्च तापमान 180°C से 200°C तक प्राप्त होता है।

3. इसमें खाद्य-पदार्थों को तला भी जा सकता है।

4. इसमें ऐसी कांच की कोई पट्टी प्रयोग नहीं की जाती।


सौर  कुकर के लाभ:

(1) कोयला/पैट्रोलियम जैसे जीवाश्म ईंधनों की बचत।

(2) प्रदूषण नहीं फैलता।

(3) खाद्य पदार्थों के पोषक तत्व नष्ट नहीं होते।

(4) एक से अधिक पकवान एक साथ बनाया जा सकते है।

सौर  कुकर की सीमाएं :

(1) रात के समय सौर कुकर का उपयोग नहीं किया जा सकता।

(2) बारिश के समय इसका उपयोग नहीं किया जा सकता।

(3) सूर्य के प्रकाश का निरंतर समायोजन करना आवश्यक है ताकि यह उसके दर्पण पर सीधा पड़े।

(4) तलने व बेकिंग हेतु उपयोग नहीं कर सकते।


सौर सेल :

सौर सेल सौर ऊर्जा को सीधे विद्युत में रूपान्तरित करते हैं। एक प्ररुपी सौर सेल 0.5 से 1V देता है जो लगभग 0.7 W (विद्युत शक्ति) उत्पन्न कर सकता है। जब बहुत अधिक संख्या में सौर सेलों को संयोजित करते हैं तो यह व्यवस्था सौर पैनल कहलाती है।

सोलर सेलों के लाभ:  

·   सौर सेलों के साथ संबद्ध प्रमुख लाभ यह है कि इनमें कोई भी गतिमान पुरजा नहीं होता, इनका रखरखाव सस्ता है

·  ये बिना किसी फोकसन युक्ति के काफी संतोषजनक कार्य करते हैं। इन्हें सुदूर तथा अगम्य स्थानों में स्थापित किया जा सकता है। इन्हें ऐसे छितरे बसे हुए क्षेत्रों में भी स्थापित किया जा सकता है जहाँ शक्ति संचरण के लिए केबल बिछाना अत्यंत खर्चीला तथा व्यापारिक दृष्टि से व्यावहारिक नहीं होता।

·   कोयला/पैट्रोलियम जैसे जीवाश्म ईंधनों की बचत।

·   प्रदूषण नहीं फैलता।


सोलर सेलों की सीमाएं या कमियाँ:

·  सौर सेल बनाने के लिए विशिष्ट श्रेणी के सिलिकॉन का उपयोग किया जाता है जिसकी उपलब्धता सीमित है।

·  सौर सेलों के उत्पादन की समस्त प्रक्रिया अभी भी बहुत महँगी है। सौर सेलों को परस्पर संयोजित करके सौर पैनल बनाने में सिल्वर (चाँदी) का उपयोग होता है जिसके कारण लागत में और वृद्धि हो जाती है।


सोलर सेलों के उपयोग:

उच्च लागत तथा कम दक्षता होने पर भी सौर सेलों का उपयोग बहुत से वैज्ञानिक तथा प्रौद्योगिक अनुप्रयोगों के लिए किया जाता है जैसे-

·   मानव-निर्मित उपग्रहों तथा अंतरिक्ष अन्वेषक युक्तियों जैसे मार्स ऑर्बिटरों में सौर सेलों का उपयोग प्रमुख ऊर्जा स्रोत के रूप में किया जाता है।

·  रेडियो अथवा बेतार संचार तंत्रों अथवा सुदूर क्षेत्रों के टी.वी. रिले केंद्रों में सौर सेल पैनल उपयोग किए जाते हैं। ट्रैफिक सिग्नलों, परिकलकों तथा बहुत से खिलौनों में सौर सेल लगे होते हैं।

·  सौर सेल पैनल विशिष्ट रूप से डिज़ाइन की गई आनत छतों पर स्थापित किए जाते हैं ताकि इन पर अधिक से अधिक सौर ऊर्जा आपतित हो। तथापि अत्यधिक मँहगा होने के कारण सौर सेलों का घरेलू उपयोग अभी तक सीमित है।


समुद्रों से ऊर्जा

ज्वारीय ऊर्जा तरंग ऊर्जा महासागरीय तापीय ऊर्जा ज्वारीय ऊर्जा घूर्णन गति करती पृथ्वी पर मुख्य रूप से चंद्रमा के गुरुत्वीय खिंचाव के कारण सागरों में जल का स्तर चढ़ता व गिरता रहता है। इस परिघटना को ज्वार-भाटा कहते हैं।

ज्वारीय ऊर्जा : ज्वार-भाटे में जल के स्तर के चढ़ने तथा गिरने से हमें ज्वारीय ऊर्जा प्राप्त होती है। ज्वारीय ऊर्जा का दोहन सागर के किसी संकीर्ण क्षेत्र पर बाँध का निर्माण करके किया जाता है। बाँध के द्वार पर स्थापित टरबाइन ज्वारीय ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में रूपांतरित कर देती है।

ज्वारीय ऊर्जा की सीमाएं: बाँध निर्मित किए जा सकने वाले स्थान सीमित हैं।

तरंग ऊर्जा:  समुद्र तट के निकट विशाल तरंगों की गतिज ऊर्जा को भी विद्युत उत्पन्न करने के लिए इसी ढंग से ट्रेप किया जा सकता है। महासागरों के पृष्ठ पर आर-पार बहने वाली प्रबल पवन तरंगें उत्पन्न करती है। तरंग ऊर्जा को ट्रेप करने के लिए विविध युक्तियाँ प्रयोग की जाती हैं जिसके द्वारा टरबाइन को घुमाकर विद्युत उत्पन्न की जाती है।

तरंग ऊर्जा की सीमाएं: तरंग ऊर्जा का वहीं पर व्यावहारिक उपयोग हो सकता है जहाँ तरंगें अत्यंत प्रबल हों।

महासागरीय तापीय ऊर्जा:  महासागरीय तापीय ऊर्जा समुद्रों अथवा महासागरों के पृष्ठ का जल सूर्य द्वारा तप्त हो जाता है जबकि इनके गहराई वाले भाग का जल अपेक्षाकृत ठंडा होता है। ताप में इस अंतर का उपयोग सागरीय तापीय ऊर्जा रूपांतरण विद्युत संयंत्र (Ocean Thermal Energy Conversion Plant या OTEC विद्युत संयंत्र) में ऊर्जा प्राप्त करने के लिए किया जाता है।

·       OTEC विद्युत संयंत्र केवल तभी प्रचालित होते हैं जब महासागर के पृष्ठ पर जल का ताप तथा 2 km तक की गहराई पर जल के ताप में 20 °C का अंतर हो।

·       पृष्ठ के तप्त जल का उपयोग अमोनिया जैसे वाष्पशील द्रवों को उबालने में किया जाता है। इस प्रकार बनी द्रवों की वाष्प फिर जनित्र के टरबाइन को घुमाती है। महासागर की गहराइयों से ठंडे जल को पंपों से खींचकर वाष्प को ठंडा करके फिर से द्रव में संघनित किया जाता है।

·       महासागरों की ऊर्जा की क्षमता (ज्वारीय-ऊर्जा, तरंग-ऊर्जा तथा महासागरीय-तापीय ऊर्जा) अति विशाल है परंतु इसके दक्षतापूर्ण व्यापारिक दोहन में कठिनाइयाँ हैं।


नाभिकीय ऊर्जा-

प्रत्येक परमाणु के नाभिक में प्रोटॉन तथा न्यूट्रॉन होते हैं तथा इलेक्ट्रॉन विभिन्न कक्षाओं में नाभिक को घेरे रहते हैं। वैज्ञानिकों ने अध्ययनों से यह ज्ञात किया कि किसी पदार्थ के परमाणुओं के केन्द्र में स्थित नाभिक असीमित ऊर्जा के भंडार हैं इसी ऊर्जा को नाभिकीय ऊर्जा कहा जाता है।

नाभिकीय ऊर्जा को दो प्रकार की अभिक्रियाओं से प्राप्त किया जाता है। ये निम्न हैं

(अ) नाभिकीय विखंडन (Nuclear Fission)

(ब) नाभिकीय संलयन (Nuclear Fusion)


(अ) नाभिकीय विखंडन– नाभिकीय विखंडन अभिक्रिया एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें किसी भारी परमाणु (जैसे यूरेनियम, प्लूटोनियम अथवा थोरियम) के नाभिक को निम्न ऊर्जा न्यूट्रॉन से बमवारी कराकर हलके नाभिकों में तोड़ा जा सकता है। जब ऐसा किया जाता है तो विशाल मात्रा में ऊर्जा मुक्त होती है।

उदाहरण के लिए यूरेनियम, के एक परमाणु के विखंडन में जो ऊर्जा मुक्त होती है वह कोयले के किसी कार्बन परमाणु के दहन से उत्पन्न ऊर्जा की तुलना में 1 करोड़ गुनी अधिक होती है।

जब मूल नाभिक का विखण्डन होता है तब नए उत्पादों के द्रव्यमान मूल नाभिकों के द्रव्यमान से कम होता है यह द्रव्यमान क्षति ही ऊर्जा के रूप में विमुक्त होती है। इस प्रकार उत्पन्न ऊर्जा की मात्र हम अलबर्ट आइंस्टीन द्वारा सर्वप्रथम व्युत्पन्न निम्नलिखित समीकरण से ज्ञात कर सकते है-

जहां: E = उत्पन्न ऊर्जा ,

m = मूल नाभिक तथा उत्पाद नाभिकों के द्रव्यमानों का अंतर

c = प्रकाश की निर्वात में चाल

विद्युत उत्पादन के लिए डिजाइन किए जाने वाले नाभिकीय संयंत्रों में इस प्रकार के नाभिकीय ईंधन स्वपोषी विखंडन श्रृंखला अभिक्रिया का एक भाग होते हैं जिनमें नियंत्रित दर पर ऊर्जा मुक्त होती है। इस मुक्त ऊर्जा का उपयोग भाप बनाकर विद्युत उत्पन्न करने में किया जा सकता है।


श्रृंखला अभिक्रिया (Chain Reaction)- जब U235 पर मन्दगामी न्यूट्रॉन की बमबारी की जाती है, तो प्रत्येक युरेनियम नाभिक लगभग दो बराबर खण्डों में टूट जाता है तथा इसके साथ ही अत्यधिक ऊर्जा एवं तीन न्यूट्रॉन उत्पन्न होते हैं। अनुकूल परिस्थितियाँ मिलने पर ये न्यूट्रॉन अन्य यूरेनियम नाभिकों को भी विखण्डित कर देते हैं। इस प्रकार नाभिकों के विखण्डन की एक श्रृंखला बन जाती है, जो एक बार प्रारम्भ होने के बाद स्वतः ही तेजी से चलती रहती है जब तक की समस्त यूरेनियम विखण्डित नहीं हो जाता। नाभिकीय विखण्डन की इस अभिक्रिया को श्रृंखला अभिक्रिया कहते हैं।


श्रृंखला अभिक्रिया दो प्रकार की होती हैं

A.    अनियंत्रित श्रृंखला अभिक्रिया (Uncontrolled Chain Reaction)

B.     नियंत्रित श्रृंखला अभिक्रिया (controlled Chain Reaction)

A.    अनियंत्रित श्रृंखला अभिक्रियाः जब यूरेनियम-235 पर मन्दगामी न्यूट्रॉन की बमबारी की जाती है तब तीन नए न्यूट्रॉन उत्पन्न होते हैं। ये न्यूट्रॉन पुनः तीन युरेनियम परमाणुओं का विखण्डन करते हैं और पुनः प्रत्येक परमाणुओं से तीन न्यूट्रॉन उत्पन्न होते हैं विखण्डन की यह प्रक्रिया बहुत तीव्र गति से आगे की ओर बढ़ती है तथा कुछ क्षणों में ही समस्त पदार्थों का विखण्डन हो जाता है । इस अभिक्रिया में विशाल मात्रा में ऊर्जा मुक्त होती है तथा एक प्रचण्ड विस्फोट का रूप ले लेती है। इस अभिक्रिया का उपयोग परमाणु बम बनाने में किया जाता है।


B.     नियंत्रित श्रृंखला अभिक्रियाः नाभिकीय ऊर्जा का उपयोग रचनात्मक कार्यों में किया जाता है नियत मात्रा में ऊर्जा प्राप्त करने के लिए इस अभिक्रिया में कृत्रिम उपायों द्वारा ऐसा प्रबन्ध किया जाता है जिससे प्रत्येक विखण्डन में उत्पन्न न्यूट्रॉनों में से केवल एक ही न्यूट्रॉन आगे विखण्डन कर पाए। इस प्रकार इस अभिक्रिया में नाभिकीय विखण्डनों की दर नियत रहती है। अतः यह अभिक्रिया धीमी गति से होती है। नाभिकीय रिएक्टर में इसी अभिक्रिया का उपयोग किया जाता है।


नाभिकीय विद्युत शक्ति संयंत्रों की प्रमुख सीमाएं :

·       पूर्णतः उपयोग होने के पश्चात शेष बचे नाभिकीय ईंधन का भंडारण तथा निपटारा करना है क्योंकि शेष बचे ईंधन का यूरेनियम अब भी हानिकारक (घातक) कणों (विकिरणों) में क्षयित होता है। यदि नाभिकीय अपशिष्टों का भंडारण तथा निपटारा उचित प्रकार से नहीं होता तो इससे पर्यावरण दूषित हो सकता है।

·       नाभिकीय विकिरणों के आकस्मिक रिसाव का खतरा भी बना रहता है।

·       यूरेनियम की सीमित उपलब्धता ।

नाभिकीय ऊर्जा के लाभ :

·       1. U-235 की छोटी सी मात्रा से अत्यधिक ऊर्जा मुक्त होती है।

·       2. अभिक्रिया में ऑक्सीजन की आवश्यकता नहीं होती है।

 

(ब) नाभिकीय संलयन- आजकल के सभी व्यापारिक नाभिकीय रिएक्टर नाभिकीय विखंडन पर आधारित हैं। परंतु एक अन्य अपेक्षाकृत सुरक्षित प्रक्रिया जिसे नाभिकीय संलयन कहते हैं, द्वारा भी नाभिकीय ऊर्जा उत्पन्न करने की संभावना व्यक्त की जा रही है। संलयन का अर्थ है दो हलके नाभिकों को जोड़कर एक भारी नाभिक बनाना जिसमें सामान्यतः हाइड्रोजन अथवा हाइड्रोजन समस्थानिकों से हीलियम उत्पन्न की जाती है।

इसमें विशाल परिमाण की ऊर्जा निकलती है। ऊर्जा निकलने का कारण यह है कि अभिक्रिया में उत्पन्न उत्पाद का द्रव्यमान, अभिक्रिया में भाग लेने वाले मूल नाभिकों के द्रव्यमानों के योग से कुछ कम होता है।

·       इस प्रकार की नाभिकीय संलयन अभिक्रियाएँ सूर्य तथा अन्य तारों की विशाल ऊर्जा का स्रोत हैं।

·       नाभिकीय संलयन अभिक्रियाओं में नाभिकों को परस्पर संलयित होने को बाध्य करने के लिए अत्यधिक ऊर्जा चाहिए।

·       नाभिकीय संलयन प्रक्रिया के होने के लिए मिलियन कोटि केल्विन ताप तथा मिलियन कोटि पास्कल दाब की आवश्यकता होती है।


NCERT Questions:

1. क्या कोई ऊर्जा स्रोत प्रदूषण मुक्त हो सकता है? क्यों अथवा क्यों नहीं?

उत्तर- नहीं, कोई भी उर्जा स्रोत प्रदूषण मुक्त नहीं हो सकता। प्रत्येक ऊर्जा स्रोत के दोहन से कोई न कोई प्रदूषण अवश्य होता है।

(i) जल ऊर्जा द्वारा विद्युत उत्पादन को प्रदूषण मुक्त कह सकते हैं, परंतुः बांध बनाने के कई हानिकारक  पर्यावरणीय प्रभाव हैं। जैसे बाँध बनाने में काफी क्षेत्र जलमग्न हो जाता है। जिससे बहुत बड़ा आवासीय क्षेत्र समाप्त हो जाता है। पेड़-पौधे समाप्त हो जाते हैं, जिससे पर्यावरणीय असंतुलन उत्पन्न होता है।

(ii) प्राकृतिक गैस; जैसे-CNG तथा LPG के प्रयोग से भी CO2 जैसी गैसें उत्पन्न होती हैं जो ग्रीन हाउस गैसें हैं।

अतः कोई ऊर्जा स्रोत पूर्णतः प्रदूषण रहित नहीं है।

3.      रॉकेट ईंधन के रूप में हाइड्रोजन का उपयोग किया जाता रहा है? क्या आप इसे CNG की तुलना में अधिक स्वच्छ ईंधन मानते हैं? क्यों अथवा क्यों नहीं?

उत्तर- हाइड्रोजन संकट ईंधन के रूप में CNG की तुलना में अधिक स्वच्छ व उत्तम ईंधन है क्योंकि

·    हाइड्रोजन के दहन से कोई हानिकारक गैस मुक्त नहीं होती, परंतु CNG के दहन से SO2  तथा NO2  जैसी प्रदूषक को उत्पन्न होती हैं।

·    हाइड्रोजन का ऊष्मीय मान 150 kJ/g है जबकि CNG का ऊष्मीय मान 55 kJ/g है।

·    हाइड्रोजन गैस नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत है, परंतु CNG गैस अनवीकरणीय ऊर्जा स्रोत है।

NCERT अभ्यास

1. गर्म जल प्राप्त करने के लिए हम सौर जल तापक का उपयोग किस दिन नहीं कर सकते

(a)   धूप वाले दिन

(b)   बादलों वाले दिन

(c)   गरम दिन

(d)   पवनों (वायु) वाले दिन

2. निम्नलिखित में से कौन जैवमात्रा ऊर्जा स्रोत का उदाहरण नहीं है

(a) लकड़ी

(b) गोबर गैस

(c) नाभिकीय ऊर्जा

(d) कोयला

3. जितने ऊर्जा स्रोत हम उपयोग में लाते हैं उनमें से अधिकांश सौर ऊर्जा को निरूपित करते हैं। निम्नलिखित में से कौन-सा ऊर्जा स्रोत अंततः सौर ऊर्जा से व्युत्पन्न नहीं है

(a) भूतापीय ऊर्जा

(b) पवन ऊर्जा

(c) नाभिकीय ऊर्जा

(d) जैवमात्रा

4. ऊर्जा स्रोत के रूप में जीवाश्मी ईंधनों तथा सूर्य की तुलना कीजिए और उनमें अंतर लिखिए।

5. जैवमात्रा तथा ऊर्जा स्रोत के रूप में जल वैद्युत की तुलना कीजिए और उनमें अंतर लिखिए।

6. निम्नलिखित से ऊर्जा निष्कर्षित करने की सीमाएँ लिखिए

(a) पवनें

(b) तरंगें

(c) ज्वार-भाटा

7. ऊर्जा स्रोतों का वर्गीकरण निम्नलिखित वर्गों में किस आधार पर करेंगे

(a) नवीकरणीय तथा अनवीकरणीय (b) समाप्य तथा अक्षय

क्या (a) तथा (b) के विकल्प समान हैं?

8. ऊर्जा के आदर्श स्रोत में क्या गुण होते हैं?

9. सौर कुकर का उपयोग करने के क्या लाभ तथा हानियाँ हैं? क्या ऐसे भी क्षेत्र हैं जहाँ सौर कुकरों की सीमित उपयोगिता है?

10. ऊर्जा की बढ़ती माँग के पर्यावरणीय परिणाम क्या हैं? ऊर्जा की खपत को कम करने के उपाय लिखिए।

Download free pdf Chapter 14 Class 10 Science Hindi Medium 

 

Comments

Popular posts from this blog

Physics 11th Class मात्रक और मापन (भाग 3)

11th class Physics Chapter 2 मात्रक और मापन (Part 1)

Classification - Reasoning for NTSE SSC Railway NMMS Exam